what is clinical depression in hindi | अवसाद का कारण
आमतौर पर हर व्यक्ति कुछ ना कुछ तनाव महसूस करता है। आजकल इसका प्रभाव बढ़ रहा है। जब हम बहुत सारे सवाल अपने मस्तिष्क में एकट्ठा कर लेते हैं और उनका उत्तर हमें मिलता नहीं है तो हम अत्यधिक तनाव महसूस करते हैं। आजकल हम लोग सोशल मीडिया में बहुत समय तक एक्टिव रहने लगे हैं। सोशल मीडिया में अधिक समय तक एक्टिव रहने के बाद बहुत सारे प्रश्न इकट्ठा कर लेते हैं।
Contents:- 1- what is clinical depression (अवसाद क्यों और कैसे ? ) 2- डिप्रेशन का मुख्य कारण 3- किसी की भी बात को स्वीकार करने की क्षमता का ह्रास 4- अप्रत्याशित विचार संग्रह 5- 100% इच्छायें पूरी नहीं हो सकती 6- तनाव से कैसे बचें? 7- अविश्वास भी तनाव का मुख्य कारण हो सकता है ? 8- सोच का दायरा कैसे बढ़ायें ? 9- सबसे बड़ा तनाव का कारण संसार को असल समझने की भूल 10- नजरिया बदलने की जरूरत 11- तनाव से मुक्त होने के 10 उपाय
what is clinical depression (अवसाद क्यों और कैसे ? )
Table of Contents
- 1 what is clinical depression (अवसाद क्यों और कैसे ? )
- 1.1 डिप्रेशन का मुख्य कारण
- 1.2 किसी की भी बात को स्वीकार करने की क्षमता का ह्रास
- 1.3 अप्रत्याशित विचार संग्रह-
- 1.4 100% इच्छायें पूरी नहीं हो सकती
- 1.5 तनाव से कैसे बचें?
- 1.6 अविश्वास भी तनाव का मुख्य कारण हो सकता है ?
- 1.7 तनाव से मुक्त होने के 10 उपाय
- 1.8 सोच का दायरा कैसे बढ़ायें ?
- 1.9 सबसे बड़ा तनाव का कारण संसार को असल समझने की भूल
- 1.10 नजरिया बदलने की जरूरत
आमतौर पर हर व्यक्ति कुछ ना कुछ तनाव महसूस करता है। आजकल इसका प्रभाव बढ़ रहा है। जब हम बहुत सारे सवाल अपने मस्तिष्क में एकट्ठा कर लेते हैं और उनका उत्तर हमें मिलता नहीं है तो हम अत्यधिक तनाव महसूस करते हैं। आजकल हम लोग सोशल मीडिया में बहुत समय तक एक्टिव रहने लगे हैं। सोशल मीडिया में अधिक समय तक एक्टिव रहने के बाद बहुत सारे प्रश्न इकट्ठा कर लेते हैं। दिन रात ये प्रश्न हमको परेशान करते हैं। हमारा किसी बात को लेकर विरोध इस कदर बढ़ जाता है कि हम अपनी प्रतिक्रिया दिए बिना रह नहीं सकते हैं।
डिप्रेशन का मुख्य कारण
आज के दौर में डिप्रेशन का मुख्य कारण सोशल मीडिया, , सनसनीखेज खबरें,अनावश्यक समाचार हैं। हम सोशल मीडिया में जो कुछ भी देखते हैं, सुनते हैं ,इन सबसे यादों का एक बहुत बड़ा संग्रह अपने दिमाग में बना लेते हैं। यादों का यही संग्रह हमको तरह तरह के प्रश्न देकर डिप्रेशन में डाल देता है। हम हमेशा ऐसा महसूस करने लगते हैं कि कुछ पीछे छूट गया। हमें लगता है कि यहां पर कुछ प्रतिक्रिया देनी चाहिए और उसके बाद हमें कमेंट की प्रतिक्रिया का इंतजार भी रहता है। हमारा ध्यान बार-बार अपने मोबाइल स्क्रीन की तरफ दौड़ते रहता है।एक तरह से मानसिक दबाव हमारे ऊपर हावी हो जाता है।
धीरे-धीरे हम इतने इसमें डूब जाते हैं कि अपने आसपास के माहौल से भी सामंजस्य नहीं बैठा पाते हैं। हमें लगने लगता है कि हमारी प्रतिक्रिया बहुत जरूरी है हम लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं जबकि यह एक भ्रम मात्र है। खाना-पीना भी भूल जाते हैं ,चिड़चिड़ा स्वभाव हो जाता है। नींद भी पूरी नहीं हो पाती है जिससे कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे हम जल्दी घबरा सकते हैं, हमें ऐसा लगने लगता है कि हम किसी गंभीर रोग से ग्रस्त होने वाले हैं अंदर से डर लगने लगता है। गुस्सा बहुत जल्दी आता है और बार-बार आता है।
किसी की भी बात को स्वीकार करने की क्षमता का ह्रास
किसी की भी बात को स्वीकार करने में हमें असमंजस होने लगता है मतलब हमारे अंदर इस प्रकार की भावना पैदा हो जाती है कि हम किसी की भी बात को स्वीकार करने को राजी नहीं होते हैं। हमें लगता है कि जो हम कह रहे हैं वही सही है और पूरी दुनिया गलत है। और यहीं से शुरू होती है डिप्रेशन की चरम सीमा। अब हम लोगों से छोटी-छोटी बातों में उलझने लगते हैं ।
अपनी बात मनवाने के लिए हम उनसे झगड़ा करते हैं यदि कोई व्यक्ति समझदार है तो वह मान जाता है तो फिर हम डींग हांकने लगते हैं कि देखा वह हमने मनवा दिया। इसके विपरीत यदि कोई हमारे प्रश्नों की खिलाफत करता है तो हम उससे बहुत गुस्से में प्रतिक्रिया करते हैं और उसके जाने के बाद फिर उसी चिंतन में पड़े रहते हैं जिससे हमारी नींद भी गायब हो जाती है। हम बार-बार उस व्यक्ति का स्मरण करके डिप्रेशन में चले जाते हैं।
अप्रत्याशित विचार संग्रह-
आजकल व्यक्ति एक ऐसे काल्पनिक संसार में जीता है, जिसका वर्तमान में कोई अस्तित्व नहीं है। व्यक्ति वर्तमान के सुख को छोड़कर काल्पनिक संसार में जीने का आदी हो गया है जिसके कारण वह वर्तमान में दुखी है। व्यक्ति काल्पनिक संसार में जीने का इंतजार करता हुआ वर्तमान को एक बोझ की तरह हो रहा है इसलिए व्यक्ति वर्तमान में हमेशा दुखी रहता है। उसको काल्पनिक जगत की चकाचौंध हमेशा अंदर से कमजोर करती है और उसकी तरफ झुकाव उसको तनाव में डालता है। दुर्भाग्यवश व्यक्ति वर्तमान को कष्ट कर बना लेता है।
100% इच्छायें पूरी नहीं हो सकती
संसार में कभी किसी की भी इच्छाएं 100% पूरी नहीं हो सकती ।कुछ पूरी होती हैं कुछ रह जाती हैं क्योंकि एक इच्छा की पूर्ति होने पर सैकड़ों इच्छाएं जन्म लेती हैं। सच्चाई तो यह है कि हम इन भौतिक सुख सुविधाओं से कभी तृप्त नहीं हो सकते। असल सुख हमारे अंदर है और उसे खोजने की आवश्यकता है। अगर इस संसार में कोई शहंशाह बनकर जीना चाहता है तो उसे इन बाहरी सुखों का त्याग करना पड़ेगा। ये बाहरी साधन हमें क्षणिक सुख जरूर देते हैं किंतु इनके जाने पर जो दुख होता है वह कई गुना ज्यादा होता है।
कबीर साहिब ने भी असली सुख की तरफ इशारा करते हुए कहा है-
चाह गई, चिन्ता मिटी ,मनुवां बेपरवाह।
जिसको कछु न चाहिए ,वही शहंशाह।।
कबीर साहिब ने समझा दिया कि जिस व्यक्ति को सांसारिक वस्तुओं की चाहत नहीं है, किसी प्रकार की चिंता नहीं है, मन हमेशा मस्त रहता है जिसका दुनिया दौलत से मन उठ गया हो वही असली शहंशाह है। हम दिन रात भिखारियों की तरह सांसारिक वस्तुओं के पीछे भागते रहते हैं। यह ठीक है कि हमें अपनी जरूरतों को पूरा करना चाहिए लेकिन अति हमेशा गर्त में ले जाती है।
तनाव से कैसे बचें?
असल में हमें पहले यह जानना चाहिए कि तनाव का कारण क्या है? हर व्यक्ति चाहता है कि लोग उसकी सुनें, उसकी मांने, उसे सम्मान दें अर्थात लोगों से कुछ आशा रखना ही तनाव का मुख्य कारण है। हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की अपनी सोच है अपना नजरिया है। पूरी दुनिया हमारी तरह नहीं हो सकती है ना ही हमारी तरह होनी चाहिए प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तिगत भिन्नता है। हमेशा लोगों के प्रति सकारात्मक नजरिया होना चाहिए।
किसी भी बात को स्वीकार करने की क्षमता हमारे अंदर होनी चाहिए भले ही हम उससे असहमत हों। व्यक्ति सोचता है कि उसने ही पूरे संसार का भार अपने कंधों पर ले रखा है। शायद वो प्रतिक्रिया नहीं देगा तो लोग रास्ते से भटक जाएंगे। यह सब हमारे मानसिक भ्रम हैं हमें लगता है कि दुनिया हमारे बारे में बहुत कुछ सोचती है जबकि यह एक मृगतृष्णा है।
यही व्यक्ति की सबसे बड़ी नासमझी या मूर्खता है। इस संसार में हर व्यक्ति का अपना-अपना नजरिया है उसे अपने तरीके से सोचने की स्वतंत्रता है। अगर हम कहें कि हमारी ही सब सुने तो यह संभव नहीं है। ऐसा होता नहीं है और हम तनावग्रस्त हो जाते हैं।
कभी-कभी हम लोगों की बातों से भी चिंता में पड़ जाते हैं। हम सोचते हैं कि लोग हमारे बारे में क्या कह रहे होंगे। कई बार हम अनावश्यक बहस में पड़ जाते हैं और वहां फिर बड़ा -छोटा या हार -जीत वाली बात से दुखी हो जाते हैं। तमाम ऐसे प्रसंग हैं जो हमें दुविधा में डालते हैं।
अविश्वास भी तनाव का मुख्य कारण हो सकता है ?
अविश्वास भी तनाव का मुख्य कारण है। माना हम किसी प्रतिष्ठान के मालिक हैं या बहुत बड़े व्यापारी हैं कारोबारी हैं, अविश्वास के कारण कभी-कभी हमारे अंदर ऐसे विचार आने लगते हैं कि जो हमारे कर्मचारी हैं इमानदार से काम करते हैं या नहीं। हम उनके कार्य को भी शक के दायरे में रखने लगते हैं। अविश्वास के कारण हमारे अंदर द्वैत प्रकृति का आगमन होता है अब हम दोराहा में फंस जाते हैं।
कभी हम सोचते हैं की प्रतिष्ठान उन्नति करेगा या नहीं, व्यापार में लाभ होगा या नहीं, कर्मचारियों को बदल देता हूं आदि आदि विचार तनाव की चरम सीमा पर ले जाते हैं। अगर हम तनाव से मुक्त होना चाहते हैं तो निम्न बातों को अपने दिमाग में बिठाना चाहिए:-
तनाव से मुक्त होने के 10 उपाय
1-कम बोलना, सटीक बोलना, बेवजह लोगों से बहस में न पड़ना।
2-हमेशा स्पष्टवादी विचार रखना, घुमा फिरा कर बात न करना, दुविधा से दूर रहना।
3-अपनी बात लोगों पर थोपने से बचना उसे उनकी समझ पर छोड़ देना।
4-लोगों से उतनी ही उम्मीद रखना जितना खुद उनके लिए निभा सकें।
5-उन लोगों से हमेशा दूरी बनाना जो अनावश्यक बहस व उलझन पैदा करते हैं।
6-सोशल मीडिया से दूर रहना और अनावश्यक टिप्पणी देने से बचना।
7-अच्छे साहित्य का अध्ययन निरंतर करना।
8-किसी भी बात को मन में न रखना उसे भूलने का प्रयास करना, एक तरह से भुलक्कड़ बनना।
9-हमेशा मुस्कुराते रहना ,लोगों से प्यार से बातें करना ।
10-योग प्राणायाम निरंतर करना और कम से कम 20 से 30 मिनट तक एकांत होकर ध्यान करना।
सोच का दायरा कैसे बढ़ायें ?
हमें समझना चाहिए कि इस संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है अर्थात हमेशा के लिए रहने वाला नहीं है। और ना ही कुछ हमारे नियंत्रण में है। न मौसम हमारे नियंत्रण में है ,न ऋतुएं हमारे नियंत्रण में हैं। ठंडा मौसम भी आएगा, गरम भी आएगा ,हम उसे नियंत्रित नहीं कर सकते। हम केवल मौसम के अनुसार अपने रहन-सहन को बदलकर उससे पार पा सकते हैं अन्यथा नुकसान उठाएंगे। इसके विपरीत यदि हम मौसम को ही भला बुरा कहने लग जाएं तो हम अपना ही नुकसान कर लेते हैं।
अगर हम कहें कि ठंड नहीं चाहिए और हम ठंड का विरोध करने लगे और सारे कपड़े उतार के बाहर घूमने लगे तो बीमार पड़ जाएंगे। इसके विपरीत हम मौसम के अनुकूल भोजन और कपड़े अपनाएंगे तो मौसम का आनंद भी ले सकते हैं और उससे छुटकारा भी पा सकते हैं। इसी प्रकार हमारा जन्म किस देश में होगा, किस जगह होगा किस परिवार में होगा, कौन मां-बाप होंगे, धर्म क्या होगा यह भी हमारे नियंत्रण में नहीं है।
यदि हम यह सोचकर अफसोस व्यक्त करने लगे कि हम एक गरीब परिवार में जन्मे हैं तो यह हमारा दुर्भाग्य ही होगा क्योंकि जन्म लेना हमारे नियंत्रण में नहीं है लेकिन मेहनत करके गरीबी दूर करना,अपनी आजीविका कमाना कुछ हद तक हमारे बस में हो सकता है। इस करके हम समस्याओं से भाग नहीं सकते बल्कि उसका सामना करने का साहस रखना चाहिए। हमें समस्या पर ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि उसके समाधान की तरफ ध्यान देना चाहिए क्योंकि समस्या पर ध्यान देने से समस्या बढ़ेगी और समाधान खोजने पर समस्या समाप्त होती है।
सबसे बड़ा तनाव का कारण संसार को असल समझने की भूल
सबसे बड़ा तनाव का कारण कि हम इस संसार को असल समझने की भूल कर बैठे हैं। हमें समझना चाहिए कि यह संसार मायावी है इसमें सब कुछ बदलने वाला है रिश्ते- नाते दोस्त, सगे संबंधी आदि आदि। बचपन में हमारा मां बाप से बहुत लगाव होता है उनके बगैर हम एक पल भी जीना नहीं चाहते रोने विलखने लगने लगते हैं। धीरे धीरे उम्र बड़ी हम स्कूलों में गए पढ़ने के लिए वहां कुछ दोस्त बन गए मां बाप से धीरे-धीरे लगाव कम होता गया और बड़े हुए कॉलेजों में चले गए वहां दोस्त बन गए फिर तो मां-बाप शायद ही याद रहे। एक ही प्यार कितने रूप बदलता है इसलिए यह सच्चा नहीं हो सकता।
नजरिया बदलने की जरूरत
हमें समझना चाहिए कि संसार में कोई सगा संबंधी नहीं है, बल्कि सबके साथ हमारा लेनदेन का संबंध है। इसलिए इसको प्रेम प्यार से निभाकर आगे बढ़ना चाहिए। अपनी सोच का स्तर बढ़ाना चाहिए। अगर हमारी सोच का दायरा बड़ा होगा तो ये समस्याएं छोटी लगेंगी और हम एक मामूली सी समस्या तनाव जो एक जटिल समस्या बनती जा रही है से पार पा सकते हैं। इसीलिए कहा गया है कि” हम अपना भाग्य नहीं बदल सकते किंतु अपना दृष्टिकोण अवश्य बदल सकते हैं”। दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है चीजें अपने आप ठीक हो जाएंगी।
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