secret of success in hindi | सफलता का रहस्य

Table of Contents

इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सफलता का एक सुनहरा अवसर संजोए रहता है। उसमें से कोई सफल होता है तो कोई असफल। सफल होने वालों के संदर्भ में कभी ऐसी परिस्थितियां  देखने को मिलती हैं जिनके कारण अल्प योग्यता वाले साधन से भी व्यक्ति  बड़े-बड़े लाभ प्राप्त कर लेते हैं। किसी के सामने अनायास ही कोई ऐसा अवसर आ जाता है जिसमें मानो सफलता ने स्वयं ही उसका वरण कर लिया हो।

 

contents:- 

1- सफलता का  रहस्य क्या है ? | what is the secret of success

2-  क्या सफलता का कोई इष्टतम साधन है? | Is there an optimal  means of success

3- कोई मुर्ख और कोई विद्वान क्यों ? | why some  fool and some scholar

4- प्रबल इच्छा शक्ति | strong will power

5-  हमारे जीवन में हमारे सोचने का कितना प्रभाव पड़ता है? | Effects of thinking life

6- मन की  इच्छा एवं  आकांक्षाएं | desires and aspirations of the mind

7- खोजी प्रवृत्ति | investigative instincts

8- दृढ़ इच्छाशक्ति ही हमें उन्नति के पथ पर कभी निराश नहीं होने देती! | strong will power effect

9- सफलता की मंजिल | success destination

10- संसार में न जाने कितना ज्ञान विज्ञान भरा पड़ा है?

11- आत्मविश्वास के बिना सफलता की ओर कदम नहीं बढ़ सकता है? | confidence meaning in hindi

12- किसी कार्य में सफल होने के लिए उसके प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए?

13- सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है | 

सफलता का  रहस्य क्या है ? | what is the secret of success

इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सफलता का एक सुनहरा अवसर संजोए रहता है। उसमें से कोई सफल होता है तो कोई असफल। सफल होने वालों के संदर्भ में कभी ऐसी परिस्थितियां  देखने को मिलती हैं जिनके कारण अल्प योग्यता वाले साधन से भी व्यक्ति  बड़े-बड़े लाभ प्राप्त कर लेते हैं। किसी के सामने अनायास ही कोई   ऐसा अवसर आ जाता है जिसमें मानो सफलता ने स्वयं ही उसका वरण कर लिया हो।

इसके अतिरिक्त सफलता के मूल में पक्षपात और भाई भतीजावाद  जैसी स्थितियां भी दिखाई देती हैं। जोर जबरदस्ती के हाथों में सफलता को बिकता हुआ देखा जा रहा है। इन सब से हटकर एक और स्थिति है जिसमें मनुष्य अपने प्रयत्न और प्रबल प्रसार से अवरोधों और कठिनाइयों से जूझ कर परिस्थितियों को चीरता हुआ सफलता के उच्च शिखर पर पहुंच जाता है। इन तीनों में सफलता का रहस्य के प्रथम दो कारण ऐसे हैं जिनमें अवसर तो है पर श्रेष्ठ साधन नहीं है।

क्या सफलता का कोई इष्टतम साधन है? | Is there an optimal  means of success

वास्तव में सफलता का रहस्य सफलता के लिए यदि कोई इष्टतम साधन हो सकता है तो वह है व्यक्ति का जुझारूपन ,उसकी कर्मठता, सीखने की इच्छा। अब प्रश्न यह है कि व्यक्ति में यह जुझारूपन आए कहां से? क्या अनायास ही आ जाता है? नहीं। इसके पीछे व्यक्ति का सूक्ष्म व्यक्तित्व की क्रियाशीलता होती है। उसके अंदर की उमंग उसे उछालती है। उसकी बुद्धि उसे परामर्श देती है। इन दोनों के समन्वय से कुछ कर गुजरने का मन बन जाता है। प्रथम चरण में इच्छा आकांक्षा प्रकट होती है। वह भी ऐसी कि सफलता की ओर कदम बढ़ाए बिना चैन कहां?

कोई मुर्ख और कोई विद्वान क्यों ? | why some  fool and some scholar

             हम देखते हैं कि एक ही कक्षा में एक ही अध्यापक द्वारा पढ़ाई हुए छात्रों की उपलब्धियों में भारी अंतर होता है। कोई प्रवीण सूची में स्थान पाता है, किसी को पास होने के लाले पड़े रहते हैं और कोई फेल होता है। कोई कुशाग्र बन जाता है किसी की बुद्धि एक कदम आगे नहीं खिसकती। हमने सगे भाई बहनों में भी जमीन आसमान की भिन्नता के उदाहरण देखे होंगे।

समाज में किसी को धनकुबेर तो किसी को रोटियों के मोहताज देख रहे हैं। कोई अद्भुत विद्वान है तो कोई निरक्षर। किसी के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है तो कोई आंसू पीते पीते जिंदगी का भार ढोता है। एक निरंतर उल्लास और आनंद की ओर बढ़ रहा है तो दूसरे का जीवन अंधकार और अवसाद में डूबा जा रहा है। एक दुख भोग रहा है तो दूसरा चैन की बंसी बजा रहा है। आखिर इस अंतर के पीछे राज क्या है?

प्रबल इच्छा शक्ति | strong will power

हम जानते हैं कि सभी मनुष्यों को लगभग एक सा शरीर मिला है। सबके हाथ पैर एक जैसे हैं। परमात्मा ने किसी के साथ कोई अन्याय नहीं किया है फिर भी बाह्य जीवन में कहीं कोई साम्य में नहीं है। आखिर क्यों? अध्यात्म  तत्व के आचार्यों ने चिंतन मनन और गहन अनुसंधान के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला कि मनुष्य के भीतर इच्छा आकांक्षा एक ऐसा तत्व है, जिसके द्वारा इस संसार में नाना प्रकार की शक्ति, सामर्थ्य और योग्यताएं प्राप्त की जा सकती हैं। इस संसार में जिसने जो कुछ भी प्राप्त किया है उसके पीछे उसकी आकांक्षा और इच्छा रही है।

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हमारे जीवन में हमारे सोचने का कितना प्रभाव पड़ता है? | Effects of thinking life

मनुष्य जैसा सोचता है और करता है वह वैसा ही बन जाता है। जिस प्रकार की इच्छा करता है वैसी ही परिस्थितियां उसके निकट एकत्रित होने लगती हैं। जहां इच्छा नहीं वहां कितने ही अनुकूल साधन उपलब्ध हों पर कोई महत्वपूर्ण सफलता हाथ नहीं लग सकती । कक्षाओं में अधिकांश छात्र इसलिए फेल होते रहते हैं कि पढ़ाई के समय उनका शरीर तो कक्षा में होता है पर मन कहीं और जगत में सैर कर रहा होता है।

जो छात्र सुख-सुविधाओं में रह रहे हैं जिनको पर्याप्त जेब खर्च मिलता है उनकी रुचि सुख भोग में लगी रहती है। वे कोई महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त करने की इच्छा ही नहीं रखते हैं। दृढ़ इच्छा और आकांक्षा के बिना पौरुष जागृत नहीं होता और पुरुषार्थ के बिना कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिलती। जिनकी आकांक्षाएं प्रबल होती हैं वे साधनहीन होते हुए भी उत्तरोत्तर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते रहते हैं।

मन की  इच्छा एवं  आकांक्षाएं | desires and aspirations of the mind

मन में जो इच्छा आकांक्षाएं काम कर रही होती हैं उसे पूर्णता प्रदान करने के लिए शरीर की समस्त शक्तियां काम करने लगती हैं। कल्पना, योजना, अन्वेषण, निरीक्षण, निर्णय आदि अनेक शक्तियां उसी दिशा में क्रियाशील होने लगती हैं। उसी तरह के विचार दौड़े चले आते हैं। अंततः सूझ खड़ी होती है।

जब यह सब मिलकर एक साथ काम करना प्रारंभ करते हैं तो इच्छित सफलता स्वयं खींची चली आती है। जब ये शक्तियां इधर-उधर बिखरी पड़ी रहती हैं तब मनुष्य सफलता के विपरीत असफलता के गर्त में गिरता चला जाता है और मात्र नगण्य सा हाड़ मांस का पुतला भर दिखाई देता है।

खोजी प्रवृत्ति | investigative instincts

   खोजी प्रवृत्ति से कुछ छुपा नहीं रह सकता। वह सफलता के स्रोत और साधन को ढूंढने में सफल हो जाती है। चोरों को चोर, ठगों का ठग, जुआरियों को जुआरी, दुराचारियों को दुराचारी आसानी से मिल जाते हैं। पढ़ने वाले स्वाध्यायशील छात्रों की दोस्ती ऐसे छात्रों के साथ नहीं देखी जा सकती जो पढ़ते नहीं हैं और न पढ़ने देते हैं। क्योंकि उनकी अभिरुचि एक दूसरे के विपरीत होती है। सफलता तो उधर ही मिलती है जिधर रुचि  होती है जहां लक्ष्य सामने होता है।

दृढ़ इच्छाशक्ति ही हमें उन्नति के पथ पर कभी निराश नहीं होने देती! | strong will power effect

गोताखोर अथाह समंदर में डुबकी लगाकर उसकी तली में से मोती खोज लाते हैं। रेत के कणों को खोजकर सोने चांदी की खदानों का पता लगा लेते हैं। खोजी प्रवृत्ति में बड़ी प्रेरक शक्ति है। इसी आधार पर मनुष्यों ने आकाश पर राह बना ली है। खोज , इच्छा और आकांक्षा को जो व्यक्ति अस्त्र की तरह काम में लेते हैं उन्हें उन्नति के अनेक साधन उपलब्ध हो जाते हैं।

सफलता की मंजिल | success destination

वस्तुतःसफलता का रहस्य  का मार्ग कठिन है। इस ऊंचाई पर पहुंचने के लिए मनुष्य को अनेक खतरों, कष्टों और निराशाओं की परीक्षा में सफल होना पड़ता है तब कहीं अभीष्ट सफलता का मुंह देखने को मिलता है। जो इन परीक्षाओं से डर जाते हैं वे असफल ही बने रहते हैं। सफलता की मंजिल क्रमश: धीरे-धीरे पार की जाती है। कई बार प्रयत्न करते करते  भी  असफलता हाथ लगती है ऐसी स्थिति में धैर्य नहीं खोना चाहिए, निराश नहीं होना चाहिए ,बल्कि प्रयत्नों की पुनरावृति का कष्ट झेलते हुए पग पग आगे बढ़ते जाना चाहिए तो मंजिल निकट आती ही जाएगी।

छात्रों द्वारा परीक्षा में श्रेणी सुधार का प्रयास इसी कोटि का है। यदि कष्ट सहिष्णु जीवनयापन का अभ्यास किया जाए तो जिन परिस्थितियों में सामान्य व्यक्ति स्वयं को असहाय और निरुपाय पाते हैं उन्हीं में जुझारू व्यक्ति जोश के साथ आगे बढ़ कर सफलता से हाथ मिलाते हैं। वस्तुतः अदम्य उत्साह, अटूट साहस, अविचल धैर्य, खतरों से लड़ने वाला पुरुषार्थ और दृढ़ संकल्प, सफलता तक पहुंचने के मजबूत सोपान कहे जा सकते हैं।

जब तक कठिन परिश्रम के प्रति रुचि नहीं पैदा कर ली जाती तब तक अभीष्ट उपलब्धि हाथ नहीं लगती। 

संसार में न जाने कितना ज्ञान विज्ञान भरा पड़ा है?

जब इस ओर मनुष्य का ध्यान गया और उसने रुचि पूर्वक उसमें अपना श्रम नियोजित किया तो वैज्ञानिक आविष्कारों का ढेर लग गया। इन अनुसंधानों में मनुष्य का नियोजित श्रम न जाने अभी कहां कहां तक ले जाएगा। विद्यार्थी जैसे-जैसे श्रम करता है वैसे वैसे ही उसके मस्तिष्क का विकास होता जाता है उसकी स्मृति और समझ का तालमेल विद्यार्थी जीवन की श्रेष्ठतम उपलब्धियां हस्तगत कराता है। इसके अतिरिक्त उसे एक ऐसी दृष्टि प्रदान करता है जिससे वह समूचे संसार में फैले ज्ञान विज्ञान तथा वैभव वर्चस्व की ओर कदम बढ़ाने में समर्थ होता है। जो परिश्रम से मुंह मोड़ते हैं उन्हें उन्नति की आसा नहीं करनी चाहिए।

परिश्रम में सृजन और उत्पादकता का विशेष गुण है। यदि विवेक और व्यवस्था के साथ श्रम किया जाए तो उसका आश्चर्यजनक परिणाम हाथ लगेगा। विद्यार्थी जीवन में ही श्रम के प्रति निष्ठा का भाव जागृत करना चाहिए।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि व्यक्ति की इच्छा और आकांक्षा कष्ट सहिष्णुता, लगन निष्ठा और श्रमशीलता ही उसकी सफलता का रहस्य है।

आत्मविश्वास के बिना सफलता की ओर कदम नहीं बढ़ सकता है? | confidence meaning in hindi

स्वामी रामतीर्थ कहते थे कि धरती को हिलाने के लिए धरती से बाहर खड़े होने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है आत्मा की शक्ति को जानने जगाने की। इस उक्ति में आत्मा की शक्ति की उस महत्ता का प्रतिपादन किया गया है जिसका दूसरा नाम आत्मविश्वास है। जिसका साक्षात्कार करके कोई भी व्यक्ति अपने परिवार में तथा अपने समाज में परिवर्तन कर सकता है। विवेकानंद, महात्मा बुद्ध तथा अन्य महात्मा की प्रचंड आत्मशक्ति ने युग के प्रवाह को मोड़ दिया। स्वतंत्रता संग्राम में भी इसी आत्मविश्वास के सामने अंग्रेजों को भागना पड़ा। आत्मविश्वास के समक्ष विश्व की बड़ी से बड़ी शक्ति झुकती रहेगी। इसी आत्मविश्वास के सहारे आत्मा और परमात्मा के बीच तादात्म्य उत्पन्न होता है तथा अनंत शक्ति के स्रोत का द्वार खुल जाता है। कठिन परिस्थितियों एवं हजारों विपत्तियों के बीच भी मनुष्य आत्मविश्वास के सहारे आगे बढ़ता जाता है तथा अपनी मंजिल पर पहुंच कर रहता है।

           मानव जाति की उन्नति के इतिहास में महापुरुषों के आत्मविश्वास का असीम योगदान रहा है। महापुरुषों ने कभी भी असफलताओं का डर नहीं माना बल्कि उनको शिरोधार्य करते हुए उन्होंने विश्वास कभी नहीं छोड़ा और अभीष्ट सफलता प्राप्त की। आत्मविश्वास का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। लौकिक एवं अलौकिक सफलताओं का आधार यही है। इसके सहारे ही निराशा में आशा की झलक दिखती है। दुख में भी सुख का आभास होता है। इससे बड़े-बड़े कार्य संपन्न किए जा सकते हैं, किए गए हैं। दशरथ मांझी का पहाड़ चीरकर पानी लाना, पनामा नहर, मिस्र के पिरामिड एवं दुर्गम पर्वतों पर निर्मित सड़कें और भवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देते हैं।

  वस्तुतः समस्त शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों का आधार आत्मविश्वास ही है। इसके अभाव में अन्य सारी शक्तियां सोई पड़ी रहती हैं। जैसे ही आत्मविश्वास जागृत होता है, अन्य शक्तियां भी उठ खड़ी होती हैं और आत्मविश्वास के सहारे असंभव समझे जाने वाले कार्य आसानी से पूरे हो जाते हैं।

    वैयक्तिक जीवन में भी आत्मविश्वास ही महत्वपूर्ण सफलताओं का आधार है। विश्वास के अभाव में ही श्रेष्ठतम उपलब्धियों से लोग वंचित रह जाते हैं। असफलताओं का मुख्य कारण है अपनी क्षमता को न पहचान पाना और अपने को अयोग्य समझना। जब तक अपने को अयोग्य, हीन, असमर्थ समझा जाएगा, तब तक सौभाग्य एवं सफलता का द्वार बंद ही रहेगा।

किसी कार्य में सफल होने के लिए उसके प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए?

जैसे एक विद्यार्थी को अगर उसकी रूचि के अनुसार कार्य करने दिया जाता है तो वह सफलता के उच्च स्तर को प्राप्त कर लेता है बल्कि इसके विपरीत उसे कोई कार्य थोपा जाता है तो  वो जीवन भर असफल ही रहता है। अगर किसी की रूचि गाने में है तो उसे गायकी में ही प्रयास करना चाहिए, इसके विपरीत किसी को गणित में रुचि है तो उसे किसी अनुसंधान की तरफ आगे बढ़ना चाहिए। रुचि के विपरीत कार्य होने पर ही व्यक्ति अधिकतर असफल होते हैं।

       व्यक्ति जब अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों को जान लेता है तो वह भी देवतुल्य बन जाता है। विश्वास के जागृत होते ही आत्मा में छिपी हुई शक्तियों प्रस्फुटित हो उठती हैं। अपने विषय में जैसी मान्यता बनाई जाती है, इसके द्वारा भी वैसा ही व्यवहार किया जाता है। जो व्यक्ति अपने को मिट्टी समझता है, अवश्य कुचला जाता है। धूल पर सभी पांव रखते हैं किंतु अंगारों पर कोई नहीं रखता। जो व्यक्ति कठिनतम  कार्यों को भी अपने करने योग्य समझते हैं, अपनी शक्ति पर विश्वास करते हैं, वे चारों ओर अपने अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न कर लेते हैं। जिस क्षण व्यक्ति दृढ़ता पूर्वक किसी कार्य को करने का निश्चय कर लेता है तो समझना चाहिए कि आधा कार्य पहले ही पूर्ण हो गया। अगर हमने शुरुआत बेहतर ढंग से की है तो उसका परिणाम सफल ही होगा। दुर्बल प्रकृति के व्यक्ति शेखचिल्ली के समान कोरी कल्पना मात्र किया करते हैं किंतु तेजस्वी मनुष्य अपने संकल्पों को कार्य रूप में परिणत कर दिखाते हैं।

   विराट वृक्ष की शक्ति छोटे से बीज में छिपी रहती है। यही बीज खेत में पढ़कर उपयोगी खाद- पानी प्राप्त करके बड़े वृक्ष के रूप में प्रस्फुटित होता है। उसी प्रकार मनुष्य के अंदर भी समस्त संभावनाएं एवं शक्तियां बीजरूप में छिपी हुई हैं, जिनको विवेक के जल से अभिसिंचित कर तथा श्रेष्ठ विचारों की उर्वरा खाद देकर जागृत किया जा सकता है। यदि व्यक्ति अपने अंदर की अमूल्य शक्ति एवं सामर्थ्य को जान लेने में सफल हो जाए तो वह सामान्य से सामान्य और असामान्य से महान हो सकता है।

सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है | 

मनुष्य की असफलताओं के कारणों में एक कारण अयोग्यता भी है। जिसने किसी काम को करने का सही ढंग सीखने में आलस किया है, उसकी रीति- नीति के संबंध में ज्ञान अर्जित करने का कष्ट नहीं उठाया है, वह उस काम को ठीक से अंजाम दे सकने की आशा अपने से नहीं रख सकता। यदि वह हट अथवा लोभ के वशीभूत उस काम को हाथ में ले ही लेगा तो दूसरों के साथ अपनी दृष्टि में भी हास्यास्पद बन जाएगा। किसी काम को सफलतापूर्वक करने के लिए उससे संबंधित योग्यता का होना अत्यंत आवश्यक है।

    योग्यता  किसी देवी वरदान के रूप में नहीं मिलती। वह एक ऐसा सुफल है, जिसकी प्राप्ति परिश्रम एवं पुरुषार्थ के पुरस्कारस्वरूप ही होती है। जो व्यक्ति आलसी हैं, अकर्मण्य हैं, काम करने में जिनका जी नहीं लगता, परिश्रम के नाम से जिनको पसीना आ जाता है, वे किसी विषय में समुचित योग्यता प्राप्त कर सकेंगे, ऐसी आशा दिवास्वप्न के समान है मिथ्या सिद्ध होगी। योग्यता की उपलब्धि परिश्रम एवं पुरुषार्थ द्वारा ही संभव है।

       किसी विषय में सफलता हस्तगत करने के लिए उस विषय की पर्याप्त योग्यता का होना आवश्यक है और योग्यता की उपलब्धि परिश्रम एवं पुरुषार्थ पर निर्भर है। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि सफलता का मूलभूत हेतु परिश्रम ही है।

अतः कहा   गया है ” परिश्रम ही सफलता की कुंजी है “।।

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