meditation in Hindi | meditation techniques for beginners
ध्यान चेतन मन की एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी चेतना को किसी बाह्य बिंदु पर केंद्रित करके आंतरिक आनंद की अनुभूति करता है। योग शास्त्र में वर्णित ध्यान और सामान्य ध्यान में बड़ा अंतर है। योग में ध्यान का लक्ष्य परम आनंद की प्राप्ति है जबकि सामान्य ध्यान भौतिक जगत तक सीमित है।
contents :- 1- ध्यान क्या है ? 2- ध्यान क्यों करें? 3- किसका ध्यान रें? 4- सामान्य ध्यान का लाभ 5- नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से कैसे बचें? 6- परम आनंद की अवस्था तक कैसे पहुंचें? 7- क्या ध्यान करने से पूर्व गुरु या मार्गदर्शक से मार्गदर्शन जरूरी है? 8- क्या बुद्धिमत्ता से परे भी कुछ है? अनहद!
ध्यान क्या है?
Table of Contents
ध्यान चेतन मन की एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी चेतना को किसी बाह्य बिंदु पर केंद्रित करके आंतरिक आनंद की अनुभूति करता है। योग शास्त्र में वर्णित ध्यान और सामान्य ध्यान में बड़ा अंतर है। योग में ध्यान का लक्ष्य परम आनंद की प्राप्ति है जबकि सामान्य ध्यान भौतिक जगत तक सीमित है। कुछ भारतीय विद्वान योग सम्मत ध्यान को सामान्य ध्यान की एक चरम विकसित अवस्था मानते हैं।
ध्यान क्यों करें?
अक्सर यह प्रश्न हमारे मन में बार-बार उठता है कि हम ध्यान क्यों करें? हम जानते हैं कि जब पानी में लहर उठती है तो उसमें हमारा प्रतिबिंब नहीं दिखता है, जबकि जब पानी ठहर जाता है तो उसमें हमारा प्रतिबिंब बनने लगता है। इसी प्रकार हमारे मन में विचारों की उथल-पुथल होती रहती है। जब तक यह विचार शांत नहीं होते तब तक हम कोई भी निर्णय करने में असफल होते हैं। इसी उथल पुथल को स्थिर रखकर एकचित अवस्था प्राप्त करने के लिए ध्यान आवश्यक है।
किसका ध्यान करें?
हम जब आंखें बंद करते हैं तो अंधेरा दिखाई देता है। इसी अंधकार में प्रकाश छिपा है। जब एकाग्रता चरम पर होती है तो धीरे-धीरे प्रकाश दिखाई देने लगता है। इसको भारतीय महात्माओं ने “अगम जोत “कहा है। दोनों आंखों के केंद्र में इसका उद्गम माना गया है। इसी को शिव नेत्र या तीसरी आंख की संज्ञा दी गई है। हमें सुखासन में बैठकर अपना ध्यान दोनों आंखों के मध्य एकाग्र करने की कोशिश करनी चाहिए। शुरू में 10 से 15 मिनट तक ध्यान करने का प्रयास करें और आगे समय धीरे-धीरे बढ़ाएं।
सामान्य ध्यान का लाभ
जब एकाग्रता बढ़ेगी तो हम अपने दैनिक कार्यों के प्रति समर्पित होते जाएंगे। कार्यकुशलता बढ़ेगी। किसी भी काम को करने में आलस्य नहीं होगा। यह सामान्य ध्यान का लाभ है। लंबे अभ्यास के बाद जब ध्यान अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है तो समाधि की अवस्था प्राप्त होती है। लंबे अभ्यास के लिए मार्गदर्शक का होना आवश्यक है। किसी अभ्यासी मार्गदर्शक से सलाह अवश्य लेनी चाहिए अन्यथा मानसिक क्षति हो सकती है। जब तक हमें कोई रास्ता पता नहीं है तो हमें केवल अंधेरे में देखने का प्रयास करना चाहिए। और हमारा ध्यान आंखों के केंद्र से इधर-उधर भटके ना। धीरे-धीरे एकाग्रता बढ़ती जाएगी और हमें आनंद मिलेगा ।
नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से कैसे बचें?
हमें ज्ञान होना चाहिए कि इस सृष्टि को एक ऊर्जा संचालित कर रही है। उसे ‘परम शक्ति‘या दिव्य शक्ति कहा जाता है। उस परम शक्ति से प्रेरित कुछ अन्य शक्तियां भी यहां मौजूद हैं। कभी-कभी ध्यान करते करते हमारी चेतना भटक जाती है और हम नकारात्मक उर्जा के प्रभाव में आ सकते हैं जिससे हमें मानसिक क्षति हो सकती है। इसलिए सलाह दी जाती है कि लंबे समय तक अभ्यास करने के लिए मार्गदर्शक की उपस्थिति आवश्यक है।
इसके अलावा हमें हमेशा ध्यान दोनों आंखों के मध्य में टिकाने का प्रयास करना चाहिए न कि किसी दृश्य के पीछे भागने की कोशिश करनी चाहिए। अंतर में कई लुभावने दृश्य भी हमें प्रलोभन देते हैं उनके पीछे कभी नहीं जाना चाहिए अन्यथा नकारात्मक ऊर्जाओं के प्रभाव में आ सकते हैं। आंतरिक दृश्य लंबे समय के बाद और एकाग्रता की चरम सीमा तक पहुंचने के बाद ही दिखाई देते हैं।सामान्य ध्यान करने वालों के लिए यह नहीं है। सामान्य ध्यान करने वालों के लिए केवल बाहरी वातावरण में एकाग्रता करना ही आवश्यक है। जिससे उनकी भौतिक संसार में एकाग्रता बनी रहे।
परम आनंद की अवस्था तक कैसे पहुंचें?
जब हमारा ध्यान दोनों आंखों के मध्य में एकाग्र होने लगता है तो हमें आंतरिक शांति का अनुभव होने लगता है। जैसे-जैसे एकाग्रता बढ़ती जाती है वैसे वैसे अंदर से शांति का अनुभव होने लगता है। व्यक्ति धैर्यवान होने लगता है। अब उसे कोई भी घटना आश्चर्य में नहीं डाल सकती , वो अपने में मस्त रहने लगता है। धीरे-धीरे उसका नजरिया उच्च स्तर को प्राप्त कर लेता है। अब उसे छोटी-छोटी घटनाएं विचलित नहीं करती। ऐसी अवस्था तक पहुंचने के लिए अभ्यास की जरूरत पड़ती है।
अभ्यास नियमित करने से धीरे-धीरे उस परम आनंद की अवस्था तक पहुंच जाते हैं। धीरे-धीरे जब एकाग्रता बढ़ती है तो हमारा ध्यान पैरों से सिमटकर दोनों आंखों के बीच तक आ जाता है। इस अवस्था में पहुंचने के बाद समाधि की अवस्था प्राप्त होती है यही परम आनंद की अवस्था है। यहां तक पहुंचने के लिए अभ्यास की और एकाग्रता की आवश्यकता होती है।
क्या ध्यान करने से पूर्व गुरु या मार्गदर्शक से मार्गदर्शन जरूरी है?
हम जानते हैं कि दुनिया का कोई भी काम सीखने के लिए हमें मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। इसलिए आंतरिक अभ्यास में तो कुछ दिखाई भी नहीं देता। उसके लिए तो मार्गदर्शक की आवश्यकता होनी ही चाहिए। अतः गुरु या अभ्यासी का मार्गदर्शन अवश्य लेना चाहिए। पूर्व में भी कहा जा चुका है कि आंतरिक अभ्यास में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव भी हमें मार्ग से विचलित करता है इसलिए गुरु से मार्गदर्शन की जरूरत है। बिना मार्गदर्शक के हम उस परम आनंद की अवस्था तक नहीं पहुंच सकते।
आंतरिक मंडलों पर कई भ्रमित करने वाले तत्व हैं जो कभी-कभी हमको मार्ग से भटका देते हैं। जो अभ्यासी होते हैं उनको इसका निदान ज्ञात होता है वह हर पल हमारा अंतर में मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए मार्गदर्शक का होना बहुत आवश्यक है।
क्या बुद्धिमत्ता से परे भी कुछ है? अनहद!
हमारी बुद्धि का एक सीमित दायरा है। इसकी सीमा निश्चित है इससे पार पाया जा सकता है। बुद्धिमत्ता से हम भौतिक सुख प्राप्त कर सकते हैं। जैसे रहन-सहन खान-पान जीवनचर्या के क्रियाकलाप बुद्धि के विकास से सुगम बनाए जा सकते हैं किंतु उस परम सुख का अनुभव बुद्धिमत्ता से परे है। इसे महात्मा अनहद कहते हैं। अर्थात ऐसा अनुभव जिसकी कोई हद नहीं है जिसको बयान नहीं कर सकते हैं। जिसकी सीमा अनंत है ।
उस तक पहुंचने वाला सब कुछ पा लेता है उसे भौतिक सुख फीके लगने लगते हैं। ऐसा अभ्यासी पुरुष दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से विरक्त रहता है। उस पर दुनिया की लाग लपेट का कोई असर नहीं पड़ता। उसे भौतिक चकाचौंध प्रभावित नहीं कर सकती क्योंकि उसे जो नजारे दिखाई देते हैं उनकी तुलना बाहर के भौतिक साधनों से नहीं की जा सकती है।
बुद्धिमत्ता केवल तर्क पर आधारित है अनहद तक पहुंचने में सारे तर्क खत्म हो जाते हैं क्योंकि वहां जाकर सब कुछ मिल जाता है सारे प्रश्नों के उत्तर सामने होते हैं फिर कुछ शेष नहीं रहता। ऐसा अभ्यासी पुरुष उस रहस्य को पा लेता है जो बुद्धिमत्ता में केवल तर्क का आधार है।
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