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khana pakane ke liye upyogi bartan | एल्युमीनियम के नुकसान

खाना बनाते समय साफ-सफाई के साथ साथ बर्तन का भी बहुत महत्व है। सेहत के लिए सिर्फ आपके तौर तरीकों का ही महत्व नहीं, बल्कि उन बर्तनों का भी विशेष महत्व होता है, जिनमें खाना पकाया एवं खाया जाता है। जिस बर्तन में खाना पकाया या खाया जाता है, उसके गुण भी उस भोजन में आ जाते हैं। कभी-कभी कुछ बर्तनों में भोजन विषाक्त हो जाता है जो बीमारी का कारण बनता है। आहार का चुनाव हम अपने स्वास्थ्य     को ध्यान में रख कर करते हैं, ताकि खाना शरीर में जाने के बाद हमे ऊर्जा प्रदान करे, शरीर स्वस्थ रहे और शरीर का संतुलन बना रहे। जिस तरह खाने के अंदर पोषक तत्व रहते हैं, वैसे ही हम खाने के लिए जो पात्र उपयोग में लाते है, उसके भी हमे फायदे और नुक्सान को ध्यान में रखना चाहिए। इसलिए सही भोजन के साथ सही धातु के बर्तन का चुनाव भी जरूरी होता है, ताकि खाने के गुणों में वृद्धि हो और हमारा शरीर रोगों से दूर रहे।

आइए किस धातु के बने बर्तनों का उपयोग हमें अपने भोजन पकाने और खाने में करना चाहिए उसके बारे में जानते हैं –

 पीतल के बर्तन (brass pot)

पीतल के बर्तनों में खाना पकाना एवं खाना सामान्यत: पुराने समय में ज्यादा किया जाता था। यह नमक और अम्ल के साथ प्रतिक्रिया करता है, इसलिए खट्टी चीजों का या अधिक नमक वाली चीजों को इसमें पकाना या खाना नहीं चाहिए, अन्यथा फूड पॉइजनिंग हो सकती है। पीतल चावल बनाने के लिए बहुत उत्तम बर्तन माना जाता है। दही व मट्ठे वाली सब्जियां पीतल के बर्तन में नहीं बनानी चाहिए।

अनेक घरों में पीतल के बर्तन का भी उपयोग होता है। यह सामान्य कीमत की धातु है। इसमें भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बिमारी नहीं होती।

तांबे के बर्तन (copper utensils)

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तांबे के बर्तनों का उपयोग भी पुराने जमाने से ही किया जाता रहा है, और यह भी पीतल की तरह ही अम्ल और नमक के साथ प्रतिकिया करता है। कई बार पकाए जा रहे भोजन में मौजूद ऑर्गे‍निक एसिड बर्तनों के साथ प्रतिक्रिया कर ज्यादा कॉपर पैदा कर सकते हैं, जो नुकसानदायक हो सकता है।कांस के बर्तन के बाद तांबे के बने बर्तन का प्रयोग होता  है। तांबा के बने बर्तन का हर घर में पूजा पाठ में भी प्रयोग लाया जाता है। इस पात्र का पानी रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध करता है, स्मरण-शक्ति अच्छी रखता है, लीवर संबंधी समस्या दूर करता है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।

एल्युमीनियम के बर्तन (aluminum utensils)

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 एल्युमीनियम के बर्तनों का इस्तेमाल लगभग हर घर में होता ही है। गर्मी मिलने पर एल्युमीनियम के अणु जल्दी सक्रिय होते हैं और एल्युमीनियम जल्दी गर्म होता है। एल्युमीनियम के बर्तन में खाना पकाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यह भी अम्ल के साथ बहुत जल्दी रासायनिक प्रतिक्रिया करता है, इसलिए इसमें खटाई या अम्लीय सब्जियों चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एलुमिनियम के बर्तनों के सेवन से विभिन्न बीमारियां हो सकती हैं। विशेषकर अम्लीय चीजें तो इसमें बनाने से बचें।

एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है , मानसिक बीमारियाँ होती है, लिवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। इन बीमारियों का जड़ से इलाज नहीं हो पाता। इसलिए अंग्रेज जेल के कैदी को इसमें खाना परोसा करते थे।

 स्टेनलेस स्टील के बर्तन (stainless steel utensils)

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वर्तमान समय में स्टील के बर्तन का उपयोग कुछ ज्यादा होता है। यह बहुत सुरक्षित और किफायती होता है। स्टील के बर्तन नुक्शान्देह नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से। इसलिए नुक्सान नहीं होता है। इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी  नहीं पहुँचता। ध्यान रहे stainless-steel असली होना चाहिए।

लोहे  के बर्तन (iron utensils)

 भोजन पकाने और खाने के लिए लोहे के बर्तनों का उपयोग हर तरह से फायदेमंद होता है। इन बर्तनों में पकाए गए भोजन में आयरन की मात्रा अपने आप बढ़ जाती है और आपको उसका भरपूर पोषण मिलता है। सामान्य तौर पर सभी को आयरन की आवश्यकता होता है, और महिलाओं को खास तौर से इसकी जरूरत होती है। प्राचीन काल से ही लोहे के बर्तनों का इस्तेमाल खाना पकाने और खाने के लिए होते रहा है। आयरन की भरपूर मात्रा इससे हमारे शरीर को प्राप्त होती है। लोहे के बर्तनों को जंग से अवश्य बचाएं। जंग लगने पर उसको अच्छे से धोकर ही उसमें खाना पकाना चाहिए।

लगभग हर घर में लोहे के बर्तन का प्रयोग भी होता है। इसमें बने भोजन खाने से  शरीर  की  शक्ति बढती है, इसमें लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है , पांडू रोग यानि गंजापन मिटाता है, शरीर में सूजन और  पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है। लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। इसके पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।

नॉन स्ट‍िक बर्तन (non stick utensils)

 नॉन स्ट‍िक का मतलब होता है, न चिपकने वाला। अर्थात ऐसे बर्तन जिनमें खाना चिपकता नहीं है और पकाने के लिए अधिक तेल या घी की आवश्यकता भी नहीं होती। लेकिन इन बर्तनों को अत्यधिक गर्म करने या फिर खरोंच लगने पर रसायन उत्सर्जित होते हैं जो हानिकारक हो सकते हैं।

सोने के बर्तन (pot of gold)

 

सोना एक महँगी धातु है। सोना लाल, सफ़ेद, और पीले रंग में उपलब्ध होता है। लेकिन साने के पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है – आँखों को तेज करता है। ठंड के मौसम में सोने के बर्तन में पानी पीना चाहिए। महंगी धातु होने के कारण बर्तन उपलब्ध नहीं होता है तो कोई छोटा सा टुकड़ा पानी के बर्तन में डाल दें उसी से इसके गुण प्राप्त होते हैं। ठंड से बचाने में सोना बहुत ही लाभकारी है।

चाँदी के बर्तन (silverware)

सोने के बाद चाँदी की धातु मूल्य में दुसरे नंबर पर होती है। चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है। इसके पात्र में भोजन बनाने और करने के कई फायदे होते हैं,  जैसे दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष , कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है। गर्मी के मौसम में पानी के बर्तन में चांदी का एक टुकड़ा डाल दें। इस पानी को पीने से शरीर को शीतलता मिलती है और गर्मी का असर भी नियंत्रित रहता है। लू से बचने के लिए चांदी डाला हुआ पानी बहुत लाभकारी है।

कांसे के बर्तन (bronze utensils)

चाँदी के बाद काँसे के बर्तन का मूल्य आता है। यह चाँदी से थोड़ी सस्ती होती है और इसके बर्तन का प्रयोग माध्यम वर्गीय परिवार में अधिक होता है। खास कर गाँव में मेहमान नवाजी के लिए इन्हीं से बने पात्र में भोजन परोसा जाता है। इसके बने पात्र में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में  शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन कांसे में खट्टी चीजें नहीं परोसनी चाहिए। खट्टी चीजें इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है।

मिटटी के बर्तन 

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भारत में पुराने समय से खाना बनाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। भोजन को स्टोर करने से लेकर बनाने तक कई तरह के मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल प्राचीन काल से होता आ रहा है। समय के साथ-साथ ये चीजें भी बदलती गयीं लेकिन एक बार फिर मिट्टी के बर्तनों का चलन पूरी दुनिया में शुरू हुआ है। ग्रामीण भारत में आज भी दूध, दही और कई अन्य चीजों के लिए मिट्टी के बर्तन का उपयोग किया जाता है। मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने के तमाम फायदे होते हैं, विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है। मिट्टी के बर्तन में भोजन तैयार करना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है और साथ इसमें बने भोजन का स्वाद भी बेहतरीन होता है।

मिटटी बर्तनों के गुण

 मिट्टी के बर्तनों में खाना धीमी गति से पकता है जिसकी वजह से भोजन और बर्तन में पर्याप्त नमी बरकरार रहती है। इसके अलावा मिट्टी के बर्तनों में महीन छेद आगर और नमी को सही तरीके से सर्कुलेट करते हैं। जिसकी वजह से भोजन में मौजूद पोषक तत्व सही तरीके से सुरक्षित रहते हैं। अक्सर धातु के बर्तनों में भोजन बनाने से खाने के तमाम महत्वपूर्ण पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। इसलिए मिट्टी के बर्तन में भोजन बनाने का विशेष फायदा मिलता है। 

मिट्टी के बर्तन में बने खाने का फ्लेवर

भारत में खाना बनाने के लिए तमाम तरह के मसालों और तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इन सब का इस्तेमाल भोजन को अधिक स्वादिष्ट और फ्लेवर युक्त बनाने के लिए किया जाता है। मिट्टी के बर्तन में बने भोजन में ये स्वाद और सुगंध बरकरार रहती है। चूंकि मिट्टी के बर्तनों में भोजन बनाने से इसका पीएच लेवल संतुलित रहता है। इसलिए इसमें बना खाना न सिर्फ हेल्दी होता है बल्कि इसकी सुगंध भी इसे बेहतर बनाती है। मिट्टी के बर्तन में बने भोजन में खनिज और पोषक तत्व जैसे लोहा, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि नष्ट नहीं होते हैं।

अस्वीकरण

उपरोक्त विवरण जानकारी के उद्देश्य से है। लेखक ने विभिन्न स्रोतों से यह जानकारी आप तक पहुंचाने की कोशिश की है। आप अपने विवेक से किसी भी बर्तन का चुनाव कर सकते हैं । लेखक का उद्देश्य किसी को इसके लिए बाध्य करना नहीं है।

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