kachnar ke fayde | kachnar kya hai | कचनार की छाल के फायदे
कचनार पूरे भारत में पाया जाता है। कचनार के पेड़ 15 से 20 फीट तक ऊंचे होते हैं। इसकी शाखाएं नाजुक और झुकी हुई रहती हैं। इसी छाल 1 इंच मोटी, खुरदरी, भूरी और सफेद रंग की होती है। इसके पत्ते हरे और चौड़े होते हैं। इसके पत्ते नीचे जुड़े और ऊपर खुले होते हैं। पौष के महीने में इसके पत्ते गिरते हैं और फागुन से ज्येष्ठ तक नए पत्ते आते हैं। इसकी कलियां लंबी और हरी होती हैं।
कचनार | Kachnar | Bauhinia tancatosa
Table of Contents
- 1 कचनार | Kachnar | Bauhinia tancatosa
- 2 आयुर्वेद में कचनार के गुण
- 3 यूनानी चिकित्सा में कचनार के गुण
- 4 कचनार का विभिन्न रोगों में उपयोग
- 4.1 कुष्ठ रोग में कचनार का सेवन
- 4.2 पाचन प्रक्रिया दुरुस्त करता है कचनार
- 4.3 खूनी बवासीर में लाभकारी है कचनार
- 4.4 घेंघा रोग में लाभकारी है कचनार
- 4.5 मुंह के छाले में कचनार का सेवन
- 4.6 सांप, बिच्छू का जहर उतारना है कचनार
- 4.7 रक्त विकार में लाभकारी है कचनार
- 4.8 आंतों के कीड़े नष्ट करती है कचनार
- 4.9 घाव और फोड़े में कचनार का सेवन
- 4.10 दांत दर्द में कचनार का सेवन
- 4.11 पीली कचनार के उपयोगी गुण
कचनार पूरे भारत में पाया जाता है। कचनार के पेड़ 15 से 20 फीट तक ऊंचे होते हैं। इसकी शाखाएं नाजुक और झुकी हुई रहती हैं। इसी छाल 1 इंच मोटी, खुरदरी, भूरी और सफेद रंग की होती है। इसके पत्ते हरे और चौड़े होते हैं। इसके पत्ते नीचे जुड़े और ऊपर खुले होते हैं। पौष के महीने में इसके पत्ते गिरते हैं और फागुन से ज्येष्ठ तक नए पत्ते आते हैं। इसकी कलियां लंबी और हरी होती हैं। इसके फूल 2 इंच लंबे, बड़े और सफेद पीले तथा लाल रंग के होते हैं। इसकी फलियां एक हाथ लंबी होती हैं। इनका स्वाद कड़वा होता है। इस पेड़ पर भूरे रंग का गोंद लगता है, जो पानी में फूल जाता है। इसकी छाल रंगने के काम में आती है।
अन्य भाषाओं में कचनार का नाम
हिंदी में कचनार; संस्कृत में कांचन, रक्त पुष्प, कांतार, कनकप्रभ, कांचनार, कोविदार; बंगाली में सफेद कांचन; मराठी में कांचन वृक्ष, कोरल; गुजराती में चंपाकासी, चम्पो; फारसी में कचनार इत्यादि नामों से जाना जाता है।
आयुर्वेद में कचनार के गुण
- लाल कचनार शीतल,सारक और अग्निदीपक होता है।
- यह स्वाद में कसैला, ग्राही और कफ, पित्त, व्रण, क्रृमि नाशक, घेंघा, कुष्ठ नाशक और रक्तपित्त को दूर करता है।
- इसके फूल शीतल, कसैले, रूखे, मधुर, हल्के, क्षय, प्रदर, खांसी और रक्त रोग दूर करते हैं।
- सफेद कचनार ग्राही, कसैला, मधुर, श्वांस, खांसी, पित्त, रक्त विकार और प्रदर रोग का नाश करता है।
- इसके शेष गुण लाल कचनार के समान ही हैं।
यूनानी चिकित्सा में कचनार के गुण
- कचनार दूसरे दर्जे में सर्द और खुष्क है।
- किसी किसी के मत के अनुसार यह समशीतोष्ण है।
- यूनानी चिकित्सक इसको कब्जियत पैदा करने वाला, खुश्की पैदा करने वाला तथा मेदे और आंतों को ताकत देने वाला मानते हैं।
- इसका प्रयोग पेट के कीड़ों को मारने में और खून के विकार को दूर करने में किया जाता है।
- घेंघा रोग में कचनार लाभदायक है।
- इसकी छाल का चूर्ण प्रमेह में भी उपयोगी होती है।
- इसकी कलियां खांसी, दस्त, बवासीर, मासिक धर्म की अधिकता और पेशाब की दिक्कत में लाभकारी हैं।
- पीले कचनार की छाल का काढ़ा पिलाने से आंतों के कीड़े मरते हैं।
- इसकी सूखी फलियों के चूर्ण की फंकी देने से आंव वाले दस्त बंद होते हैं।
- इसकी जड़ की छाल का काढ़ा पिलाने से लीवर की दिक्कत दूर होती है।
कचनार का विभिन्न रोगों में उपयोग
लाल, सफेद और पीला तीनों ही कचनार आयुर्वेद में औषधीय गुण रखते हैं। विभिन्न रोगों में इनका सेवन किया जाता है। आइए विस्तार से वर्णन करते हैं-
कुष्ठ रोग में कचनार का सेवन
कचनार की छाल के काढ़े में बावची के तेल की 25 बूंद डालकर पिलाने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
पाचन प्रक्रिया दुरुस्त करता है कचनार
लाल कचनार की जड़ का काढ़ा पिलाने से पाचन क्रिया तेज होती है। तीन माशे अजवाइन के चूर्ण की फंकी के साथ लाल कचनार के क्वाथ को पिलाने से पेट फूलना बंद हो जाता है। यह औषधि पेचिश में फायदा करने वाली और जहर उतारने वाली है।
खूनी बवासीर में लाभकारी है कचनार
मिश्री और मक्खन में कचनार की कलियों का चूर्ण मिलाकर चाटने से खूनी बवासीर दूर होता है। इसकी कलियों का काढ़ा खूनी बवासीर और पेशाब से आने वाले खून में उपयोगी है।
घेंघा रोग में लाभकारी है कचनार
कचनार की छाल या फूल के काढ़े को ठंडा करके शहद मिलाकर पिलाने से घेंघा में लाभ होता है और खून साफ होता है। भीतरी उपचार इसकी छाल विशेष रूप से काम में ली जाती है। घेंघा रोग में यह अत्यंत उपयोगी है। इस रोग में गले की ग्रंथि बढ़ जाने पर इसे चावल के पानी और सोंठ के साथ उपयोग में लिया जाता है।
मुंह के छाले में कचनार का सेवन
कचनार के पेड़ की छाल और अनार के फूल इन दोनों के काढ़े से कुल्ला करने से मुंह के छालों में लाभ होता है। इसकी अंतरछाल को 5 तोला लेकर आधा सेर पानी में उबालना चाहिए। फिर इस पानी से कुल्ला करना चाहिए। बार-बार ऐसा करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। जिनके मुंह के छाले बार-बार मिटते नहीं उनके लिए यह औषधि रामबाण है।
सांप, बिच्छू का जहर उतारना है कचनार
सांप, बिच्छू के जहर उतारने में इसके छाल, फूल और अन्य सभी हिस्सों का उपयोग किया जाता है।
रक्त विकार में लाभकारी है कचनार
यह वनस्पति रक्त विकार में बहुत उपयोगी है। इसकी छोटी और सूखी हुई कलियों और फूलों का सेवन करने से रक्त विकार में लाभ होता है।
आंतों के कीड़े नष्ट करती है कचनार
कचनार आंतों के अंदर की कीड़ों को नष्ट करती है। इसकी जड़ के छिलके का काढ़ा लीवर की जलन को दूर करता है। यह कृमि नाशक है। कचनार की छाल या इसकी कलियों का काढ़ा पिलाने से आंतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
घाव और फोड़े में कचनार का सेवन
घाव और फोड़े में इसकी छाल को कूटकर बाहर से लगाने से लाभ होता है। कचनार की जड़ का चावल के धोवन के साथ पुल्टिस बांधने से फोड़ा जल्दी ठीक होता है।
दांत दर्द में कचनार का सेवन
कचनार की लकड़ी के कोयले से दंत मंजन करने से दांत दर्द ठीक होता है।
पीली कचनार के उपयोगी गुण
- पीली कचनार ग्राही, अग्नि दीपक, कसैली, कफ और वात नाशक होती है।
- इस वनस्पति के सभी हिस्से सांप और बिच्छू के जहर में उपयोगी हैं।
- सांप के जहर में इसके ताजे बीजों की लई बनाकर सिरके के साथ काटे हुए स्थान पर लगाया जाता है।
- लाल कचनार के छिलके को चावल के पानी और अदरक के साथ घेंघा और गले की गांठ पर लगाने से लाभ होता है।
- कचनार के चूर्ण और कमल वृक्ष के योग से तैयार किया हुआ घी मस्तिष्क, बौद्धिक शक्ति और याददाश्त को बढ़ाने में लाभदायक है।
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