isabgol use in hindi | ईसबगोल की भूसी के फायदे
इसबगोल ( isabgol use in hindi ) के बीज शीतल, शांति दायक और प्रकृति को मुलायम करने वाले होते हैं। इसके सेवन से साफ दस्त आते हैं। पेट की मरोड़, अतिसार और आंतों के घाव में बहुत लाभकारी है। मुट्ठी भर इसबगोल प्रतिदिन प्रातः काल सेवन करने से स्वांस और दमे में बहुत लाभ मिलता है। 6 महीने से 2 वर्ष तक इसबगोल का सेवन करने से 20 से 22 साल पुराना दमा ठीक होता है।
इसबगोल | isabgol
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यह एक प्रकार का प्रकांडरहित झाड़ी नुमा पौधा होता है, जो लगभग 1 गज ऊंचा होता है। इसके पत्ते धान के पत्तों के समान और डालियां बारीक होती हैं। डाली के सिरे पर गेहूं की तरह बालियां लगती हैं। इन बालियों में बीज होते हैं। इसके बीजों के ऊपर महीन और सफेद झिल्ली होती है। इस झिल्ली को उतारने पर इसबगोल भूसी के रूप में हो जाती है। यही इसमें पाए जाने वाले जुलाब के केंद्र हैं। इसबगोल अरेबियन गल्फ एवं पर्सिया में पाया जाता है। पंजाब, मालवा एवं सिंध में भी इसबगोल की कुछ जातियां उत्पन्न होती हैं।
अन्य भाषाओं में इसबगोल के नाम
हिंदी में इसबगोल; संस्कृत में ईषदगोलम्, स्निग्धबीजम्, स्निग्धजीरकम्; मराठी में इसबगोल; गुजराती में उथमुंजीरुं; बंगाली में इसप्गुल; तेलुगु में हस्पगुल; फारसी में इस्पगलम्; अरबी में वजरेकुतुना आदि नामों से जाना जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार इसबगोल के गुण
इसके बीज शीतल, शांति दायक और प्रकृति को मुलायम करने वाले होते हैं। इसके सेवन से साफ दस्त आते हैं। पेट की मरोड़, अतिसार और आंतों के घाव में बहुत लाभकारी है। मुट्ठी भर इसबगोल प्रतिदिन प्रातः काल सेवन करने से स्वांस और दमे में बहुत लाभ मिलता है। 6 महीने से 2 वर्ष तक इसबगोल का सेवन करने से 20 से 22 साल पुराना दमा ठीक होता है। उष्ण प्रकृति के रोगियों को होने वाले शुक्रमेह में भी यह औषधि बहुत लाभकारी है। संधिवात, ग्रंथिवात और अन्य वात रोगों में इसकी पुल्टिस चढ़ाने से बड़ा लाभ होता है।
इसबगोल के उपयोगी गुण
इसबगोल, शीतल मिर्च और कलमीशीरे की फंकी लेने से मूत्र रोग में लाभ होता है। इसके बीजों को ठंडे पानी में भिगोकर उनके लुआब को छानकर पिलाने से खूनी बवासीर में लाभ होता है। बूरे के साथ इसका लुआब पिलाने से पेशाब की जलन दूर होती है। गठिया और जोड़ों के दर्द में इसकी पुल्टिस बांधने से लाभ होता है। इसको सिरके में पीसकर कनपटी पर पतला लेप करने से नकसीर बंद होती है। साल 6 महीने तक लगातार दिन में 2 बार इसबगोल की फंकी लेते रहने से सभी प्रकार के स्वांस रोग समाप्त होते हैं। एक तोले इसबगोल का लूआब निकाल कर उसमें बूरा मिलाकर पिलाने से पित्तोन्माद है।
चेतावनी
ऐसा कहा जाता है कि इसबगोल को पीसने से वह जहरीला हो जाता है। अतः खाने के उपयोग में इसे पीसकर नहीं लेना चाहिए। बल्कि भिगोकर और भूसी निकालकर इसका प्रयोग करना चाहिए।
इसबगोल लेने की विधि
- स्वच्छ सूखे बीज एक कप पानी में डालकर धो लें। धोने के बाद उसमें एक या दो चम्मच शक्कर मिलाकर सेवन करना चाहिए।
- दूसरी विधि यह है कि इसके बीज एक कप पानी में डाल दिए जाते हैं। आधे घंटे बाद वे सब फूल जाते हैं। स्वाद अनुसार कुछ शक्कर मिलाकर इस लुआब का सेवन करना चाहिए।
- आधे से एक गिलास पानी में इसकी दो तीन खुराकें डालकर उबाल ली जाती हैं। आधा पानी शेष रहने पर इसकी दो से चार खुराक बना लें। उसे दो से तीन घंटे के अंतर में पीना चाहिए।
- इस विधि में इसबगोल की बीज की जगह उसकी भूसी काम में ली जाती है। इस भूसी को आधा तोला से एक तोला तक की मात्रा एक कप पानी में डालकर कुछ शक्कर के साथ मिलाकर लेना चाहिए।
- अगर अंतड़ियों के भाग मल से अवरुद्ध हों तो इस विधि का इस्तेमाल ज्यादा अच्छा होता है।
- पाचन प्रणाली की तीव्रता पर भारतीय वैद्य इस विधि का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।
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