introvert teenager meaning in hindi | किशोरावस्था क्या है?
किशोरावस्था वह काल होता है जिसमें बालक या बालिका ना तो बच्चा होता है और ना ही उन्हें प्रौढ़ ही कहा जा सकता है। किशोरावस्था मनुष्य के जीवन का बसंतकाल माना गया है। यह काल बारह से उन्नीस वर्ष तक रहता है, परंतु किसी किसी व्यक्ति में यह बाईस वर्ष तक चला जाता है। यह काल सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों के विकास का समय है।
किशोरावस्था
Table of Contents
- 1 किशोरावस्था
- 1.1 किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएं
- 1.2 खुद पर सबसे ज्यादा भरोसा करना
- 1.3 विद्रोही प्रवृत्ति
- 1.4 आक्रोश एवं हिंसक प्रवृत्ति :
- 1.5 धार्मिक भेदभाव एवं छुआछूत से दूर :
- 1.6 अपने कैरियर के प्रति निष्ठा :
- 1.7 मित्र समूह की भूमिका :
- 1.8 एकता एवं सहयोग की भावना का विकास :
- 1.9 भुक्खड़पन :
- 1.10 अपने शारीरिक विकास पर ध्यान :
- 1.11 उत्सुकता एवं उदासीनता :
- 1.12 कल्पना शक्ति का विकास :
- 1.13 काम भावना का विकास:
- 1.14 निष्कर्ष :
इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं में कई तरह के परिवर्तन तेजी से होने लगता है जिस कारण से उन्हें इस अवस्था में काफी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है। इस अवस्था को तनाव तूफान तथा संघर्ष का काल भी कहा जाता है क्योंकि इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं में काफी सारे परिवर्तन होने के कारण भी बहुत ज्यादा वे तनाव में रहते हैं और अपने जीवन में बहुत ज्यादा संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते हैं। बालक भविष्य में जो कुछ होता है, उसकी पूरी रूपरेखा उसकी किशोरावस्था में बन जाती है। जिस बालक ने धन कमाने का स्वप्न देखा, वह अपने जीवन में धन कमाने में लगता है। इसी प्रकार जिस बालक के मन में कविता और कला के प्रति लगन हो जाती है, वह इन्हीं में महानता प्राप्त करने की चेष्टा करता और इनमें सफलता प्राप्त करना ही वह जीवन की सफलता मानता है। जो बालक किशोरावस्था में समाज सुधारक और नेतागिरी के स्वप्न देखते हैं, वे आगे चलकर इन बातों में आगे बढ़ते है।
किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएं
किशोरावस्था वह काल होता है जिसमें बालक या बालिका ना तो बच्चा होता है और ना ही उन्हें प्रौढ़ ही कहा जा सकता है। किशोरावस्था मनुष्य के जीवन का बसंतकाल माना गया है। यह काल बारह से उन्नीस वर्ष तक रहता है, परंतु किसी किसी व्यक्ति में यह बाईस वर्ष तक चला जाता है। यह काल सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों के विकास का समय है। भावों के विकास के साथ साथ बालक की कल्पना का विकास होता है। उसमें सभी प्रकार के सौंदर्य की रुचि उत्पन्न होती है और बालक इसी समय नए नए और ऊँचे ऊँचे आदर्शों को अपनाता है।
आज हम किशोरावस्था के प्रमुख विशेषताओं के बारे में अध्ययन करेंगे।
खुद पर सबसे ज्यादा भरोसा करना
किशोरावस्था के प्रमुख विशेषताओं में यह विशेषता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि किशोरावस्था के बालक एवं बालिकाओं खुद पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं। वे किसी भी अन्य व्यक्ति या माता-पिता की बातों को अनदेखा कर देते हैं। वे जो भी करते हैं, उसे पूरी लगन से करते हैं। कभी-कभी अति आत्मविश्वास के कारण निराशा भी हाथ लगती है। अपने पर ज्यादा भरोसा होने के कारण बड़ों के द्वारा दिए गए मार्गदर्शन का भी असर नहीं पड़ता। जिस कारण कभी-कभी किशोर गलत रास्ते को अपना लेते हैं। नशे की प्रवृत्ति और कामुकता की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
विद्रोही प्रवृत्ति
किशोरावस्था के बालक एवं बालिकाओं में विद्रोह प्रवृत्ति बहुत ज्यादा होती है। वे पौराणिक नियमों को नहीं मानते हैं। बुजुर्गों के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन नहीं करते हैं। उनके द्वारा बताई गई बातें उन्हें अच्छी नहीं लगती। हमेशा अपने तरीके से काम करने का विचार मन में रहता है। किसी का भी मार्गदर्शन उनको समझ में नहीं आता। जबरदस्ती समझाने पर बातों का विरोध करते हैं। इस उम्र में अकड़ बहुत रहती है। जल्दी गुस्सा आता है, विद्रोही प्रवृत्ति प्रबल होती है। इस उम्र के बालकों में विचारों में मतभेद, मानसिक स्वतंत्रता एवं विद्रोह की प्रवृत्ति देखी जा सकती है। इस अवस्था में किशोर समाज में प्रचलित परम्पराओं, अंधविश्वासों के जाल में न फँसकर स्वछंद जीवन जीना पसंद करते हैं ।
आक्रोश एवं हिंसक प्रवृत्ति :
किशोरावस्था संक्रमण काल होता है, जिसमें बालक एवं बालिकाओं में इतने ज्यादा परिवर्तन होते हैं कि जो उनकी मानसिक शक्ति को प्रभावित करता है। जिसके कारण उनमें चिड़चिड़ापन उत्पन्न हो जाता है और वे आक्रोश एवं हिंसक हो जाते हैं। गुस्सा बहुत जल्दी आने लगता है। व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ जाता है। गलत संगति का असर होने पर किशोर हिंसक प्रवृत्ति वाले हो जाते हैं। किशोरों को कोई भी बात समझाओ तो उनको उसका असर बहुत कम होता है। इसके विपरीत वे हर बात को जल्दी नकार देते हैं। उनके भलाई की भी कोई बात करो तो वे उसका विरोध करने लगते हैं और कभी-कभी वे हिंसा पर भी उतर आते हैं।
धार्मिक भेदभाव एवं छुआछूत से दूर :
किशोरावस्था में बालक एवं बालिकाओं में किसी भी प्रकार के जातिगत भेदभाव, धर्म से संबंधित भेदभाव, छुआछूत की भावना उनके अंदर नहीं होते हैं बल्कि वे इन भेदों से दूर होकर एक साथ रहते हैं। एक साथ खेलते हैं और परिवेश को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं। किशोर अपनी दुनिया में ही मग्न रहते हैं। धार्मिक उन्माद और छुआछूत का असर ना के बराबर होता है। कुछ स्थितियों में धार्मिक भेदभाव और छुआछूत भी किशोरों में चरम सीमा पर होता है। लेकिन अधिकतर किशोरों में यह भेदभाव की भावना नहीं होती है।
अपने कैरियर के प्रति निष्ठा :
किशोरावस्था वह काल होता है जिसमें बालक एवं बालिका है अपने कैरियर के प्रति निष्ठावान हो जाते हैं। अपने पैरों में खड़ा होकर कुछ अच्छा करने का प्रयास करते हैं और इसके लिए वे हमेशा परेशान रहते हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि वे किस करियर में आगे बढ़ें। इसके लिए वे अपने माता-पिता से भी सलाह लेने का प्रयास करते हैं। वे हमेशा उलझन में रहते हैं कि यह करूं या वह करो। हर दिन नई प्लानिंग करते रहते हैं कि मुझे इस प्रोफेशन में जाना है, कभी उस प्रोफेशन में जाना है। कैरियर को लेकर इस उम्र में बहुत दुविधा होती है। नई नई चीजों के प्रति हमेशा मन में जिज्ञासा रहती है। कभी-कभी कैरियर के प्रति मन में बहुत तनाव भी उत्पन्न हो जाता है।
मित्र समूह की भूमिका :
प्रत्येक बालक की इच्छा होती है कि वह अपने हम उम्र के बच्चों को मित्र बनाएं। किशोरावस्था ऐसी अवस्था है जिसमें बालक एवं बालिका अपने हम उम्र के बालक एवं बालिकाओं से बिना किसी भेदभाव के मित्र बनाते हैं। उनकी मित्र समूह में विभिन्न प्रकार के बच्चे होते हैं उन बालकों के स्वभाव, आचार विचार, रहन-सहन का स्तर, धर्म, संस्कृति सामाजिक, आर्थिक, पृष्ठभूमि इत्यादि में अंतर पाए जाते हैं यह विशेषताएं उन सभी बालकों पर समान रूप से पड़ती है। और सभी अपने मित्रों के विभिन्न परिस्थितियों में एकजुट होकर उन समस्याओं को समाधान करने में जुट जाते हैं। दोस्त बनाने का इस उम्र में बहुत शौक होता है। रिश्तों के टूटने का डर भी बना रहता है। मन में हमेशा चिंता बनी रहती है कि कहीं दोस्त मुकर ना जाएं, मैं अकेला ना रह जाऊं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि यह जो रिश्ते हैं, कोई बिछड़ ना जाए, भूल ना जाएं। मन में डर बैठा रहता है।
एकता एवं सहयोग की भावना का विकास :
किशोरावस्था में एकता एवं सहयोग की भावना का विकास भी होता हैं। सामूहिक खेलों से आदान-प्रदान की भावना का विकास होता है। जब बच्चे एक दूसरे के साथ मिलजुल कर कहते हैं तो उनमें एकता व सहयोग की भावना पनपती है। यह मिलजुलकर खेलने की भावना आगे चलकर मिलजुल कर रहने की भावना में बदल जाती है। घर के कामों में सहयोग करने लगते हैं। समाज के कामों में श्रमदान करने जैसी भावनाएं में आती हैं। एक उमंग के साथ हर काम में सहयोग करने की भावना इस उम्र में प्रबल रूप से होती है।
भुक्खड़पन :
किशोरावस्था में बालक एवं बालिकाओं में खाने-पीने के प्रति बहुत ज्यादा रुझान देखने को मिलती है। वे विभिन्न तरह के पकवान खाने के शौकीन होते हैं। उन्हें हर एक-दो घंटे में कुछ ना कुछ खाने की आदत होती है। वो जंक फूड खाना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। जैसे चाऊमीन, मोमोज, मैगी, नूडल्स इत्यादि फास्ट फूड का सेवन अधिक करते हैं। इस उम्र में भूख बहुत लगती है। बार-बार कुछ न कुछ खाने का मन करता है। खट्टा, मीठा, चटपटा खाने की इच्छा ज्यादा होती है। बार-बार खाते रहते हैं और नए नए स्वाद आजमाने की इच्छा रहती है।
अपने शारीरिक विकास पर ध्यान :
किशोरावस्था में बालिकाएं अपने शारीरिक विकास में काफी ज्यादा ध्यान देने लगती हैं। उन्हें अपने शरीर के विकास पर सबसे ज्यादा चिंता सताने लगता है। जिसके कारण से वे अपने आप पर ध्यान देने लगती हैं। साथ ही अपने खाने-पीने पर भी कंट्रोल करने लगती हैं। वह डाइट करना शुरू कर देती है, लेकिन ठीक इसके विपरीत बालक अपने शारीरिक विकास पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते। पर खेलकूद एवं जिम के कारण उनकी शारीरिक विकास पर उन्हें ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती। इस उमर में हमेशा शरीर के विकास की चिंता सताती है। शरीर में होने वाले परिवर्तन के प्रति उत्सुकता होती है। अपने को देखकर ही शर्माने लगते हैं। शरीर के अंगों के विकास को देखकर मन में आश्चर्य भी होने लगता है। लड़कियों की आवाज सुरीली होने लगती है। लड़कों की आवाज में भारीपन आ जाता है।
उत्सुकता एवं उदासीनता :
इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं में उदासीनता सबसे ज्यादा होती है। सबसे ज्यादा उदासीनता उसके प्रेम संबंध से संबंधित होती है। इस उम्र में प्रेम संबंध का होना एक आम बात है। उनमें इतनी समझ नहीं होती कि वह क्या कर रहे होते हैं। जिसके कारण मन उत्सुकता एवं उदासीनता से ही भरा रहता है। हमेशा कुछ नया सुनने की और करने की उत्सुकता रहती है। दोस्ती में खटास होने के कारण मन उदास भी रहता है। दोस्ती में हमेशा तनातनी बनी रहती है, जिसके कारण उदासीनता बनी रहना आम बात है। छोटी-छोटी बातों को लेकर मन में हमेशा दुविधा रहती है। कई चीजें मन में घर कर जाती हैं, जो उदासी का कारण बनती हैं।
कल्पना शक्ति का विकास :
इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं में कल्पना शक्ति का तीव्र विकास होने लगता है और वे दिवा स्वप्न देखने लगते हैं। दिवा स्वप्न किशोरों को प्रेरणा देते हैं तथा इस आधार पर वे रचनात्मक कार्य करते हैं। किशोरोवस्था में उनकी कल्पना-शक्ति काफी विकसित हो जाती है। कल्पना में बहुत ज्यादा खो जाते हैं, जिसका प्रभाव उनके जीवन में भी पड़ता है और वे अच्छे कलाकार जैसे संगीतकार, चित्रकार भी बन जाते हैं। मन में हमेशा कुछ नई कल्पनाएं आती रहती हैं। इन कल्पना-शक्तियों के आधार पर ही वह अपनी आंतरिक शक्तियों का विकास करता है।
काम भावना का विकास:
किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों में यौन परिपक्वता आने लगती है एवं प्रजनन अंगों में भी परिपक्वता आने लगती है। शरीर में कई बदलाव होते हैं। कर्मेन्द्रियों का पूर्ण रूप से विकास हो जाता है तथा काम भावना का विकास होता है तथा किशोर-किशोरियाँ अपने विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होते हैं। इस अवस्था में बालक में काम भावना का विकास होने लगता है। बालक एवं बालिकाओं में काम भावना का होना एक आम बात है। बालकों में स्वप्नदोष जैसी बीमारी आने लगती है एवं बालिकाओं में मासिक धर्म या पीरियड्स होने लगता है। बालकों में उत्तेजना बहुत होने लगती है। किसी भी लड़की को देखकर लिंग खड़ा हो जाता है। बार-बार स्वप्नदोष होता है। जो लड़के अश्लील दृश्य और अश्लील चलचित्र देखते हैं, उनको स्वप्नदोष की समस्या ज्यादा होती है। लड़कियों में मासिक धर्म होने के कारण कामुकता बढ़ती है। लड़कों के प्रति आकर्षण होने लगता है। इस उमर में शारीरिक आकर्षण बहुत ज्यादा होता है।
निष्कर्ष :
निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि किशोरावस्था की प्रमुख प्रवृत्तियों में इन सभी प्रवृतियां का होना निश्चित ही है। इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं बहुत ज्यादा चंचल, भुक्कड़, समाजसेवी, पशुओं के प्रति निष्ठा, कामवासना, समलैंगिकता जैसे गुणों से भरे होते हैं। इसीलिए तो इस काल को जीवन का स्वर्णिम काल भी कहा जाता है, क्योंकि इस काल में बालक एवं बालिकाओं में बदलाव तेजी से देखने को मिलता है। इस दौर को जो पार कर लेता है उनका जीवन सुखमय हो जाता है।
मानव विकास की सबसे विचित्र तथा जटिल अवस्था किशोरावस्था है। इसमें होने वाले परिवर्तन बालक के व्यक्तित्व के गठन में महत्वपूर्ण योग प्रदान करते हैं। अतः शिक्षा के क्षेत्र में इस अवस्था का विशेष महत्व है। ई. ए. किलपैट्रिक ने लिखा है,” इस बात पर कोई मतभेद नही हो सकता है कि किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल हैं।” स्टेनले हाल के अनुसार,” किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, तूफान एवं विरोध की अवस्था है।”
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