Traditional medicine

information about pine tree in hindi | चीड़ के तेल के फायदे

यह हिमालय क्षेत्र सिंध और भूटान, सिक्किम, नेपाल आदि में पाया जाता है। चीड़ का वृक्ष बहुत बड़ा होता है। यह हिमालय प्रदेश में सिंध से भूटान तक डेढ़ हजार फिट से साढ़े 7000 फीट की ऊंचाई तक पैदा होता है। इसके पत्ते चमकीले हरे रंग के और फल नोकदार होते हैं। इस फल में बीज रहते हैं। इसकी छाल में किसी औजार से धारियां देकर इसका गोंद निकाला जाता है। इसको गंधविरोजक कहते हैं।

चीड़ का पेड़

information about pine tree in hindi

एक सपुष्पक किन्तु अनावृतबीजी पौधा है। यह पौधा सीधा पृथ्वी पर खड़ा रहता है। इसमें शाखाएँ तथा प्रशाखाएँ निकलकर शंक्वाकार शरीर की रचना करती हैं। इसकी ११५ प्रजातियाँ हैं। ये ३ से ८० मीटर तक लम्बे हो सकते हैं। चीड़ के वृक्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में पाए जाते हैं। इनकी 90 जातियाँ उत्तर में वृक्ष रेखा से लेकर दक्षिण में शीतोष्ण कटिबंध तथा उष्ण कटिबंध के ठंडे पहाड़ों पर फैली हुई हैं। इनके विस्तार के मुख्य स्थान उत्तरी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका के शीतोष्ण भाग तथा एशिया में भारत, बर्मा, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो और फिलीपींस द्वीपसमूह हैं।

अन्य भाषाओं में चीड़ का नाम

हिंदी में चीड़, साला, सारल; संस्कृत में भद्र दारू, धूप वृक्षका, मरीचपत्रिका, पीत दारू; बंगाली में सरल, कष्टा; गुजराती में देवदार; गढ़वाल में साला, कोलेन; कुमाऊं में चीड़; कश्मीरी में चीड़, साला,सलस; पंजाबी में चीड़,गुला, नखतार; नेपाल में धूपसलसी आदि नामों से जाना जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार चीड़ के गुण

यह मीठा, तीक्ष्ण, कड़वा, गरम, स्निग्ध और आंतों के कीड़ों को नष्ट करने वाला होता है। आंख, कान, गला, रक्त और त्वचा की बीमारियों में यह लाभदायक है। इसका गोंद कड़वा, कसैला, गर्म और स्निग्ध होता है। यह पेट के आफरे को दूर करता है। कामोद्दीपक होता है। मंदाग्नि, व्रण,खुजली, प्रदाह और सिर दर्द दूर करता है।

यूनानी चिकित्सा के अनुसार चीड़ के गुण

इसका गोंद तीसरे दर्जे में गर्म और खुश्क होता है। पुरानी खांसी, दमा, हिस्टीरिया, मिर्गी, बवासीर, जिगर और तिल्ली की बीमारियों में लाभदायक है। गुलाब के तेल में घोंटकर इसको कान में डालने से सिर दर्द और कफ से पैदा हुआ कान दर्द दूर होता है। फोड़े, नासूर और जख्मों पर लेप करने से बहुत लाभ होता है। फालिस या लकवा में भी यह बहुत लाभदायक है। इसकी लकड़ी वायु और कफ को बिखेरती है। गुर्दा और मसाने की पथरी को तोड़ती है, हिचकी में भी इससे बहुत लाभ होता है। कंठमाला पर इसका लेप करने से लाभ होता है।

चीड़ के कुछ महत्वपूर्ण उपयोग

चीड़ के तेल और गोंद का ही औषधि के रूप में उपयोग होता है। हर प्रकार के घाव में इसका तेल लाभदायक है। जीर्ण कफ  रोगों में और कफ से पैदा हुए क्षय में यह बहुत उपयोगी है। इसके सेवन से फेफड़े और श्वास नलिका की रक्त संचरण की क्रिया ठीक होती है। दमे की बीमारी में चीड़ का तेल छाती में मालिश करने से काफी लाभ होता है। कफ क्षय में कभी-कभी फुफ्फुस के अंदर रक्त वाहिनी  फटकर रक्त बहने लगता है और कफ के साथ गिरने लगता है। ऐसी हालत में चीड़ का तेल खिलाने से, सुंघाने से और उसकी मालिश करने से लाभ होता है।

गंध बिरोजा का उपयोग औषधि के रूप में

  • गंध बिरोजा का उपयोग औषधि के रूप में बहुत होता है।
  • गंध बिरोजा एक उत्तम वायुनाशक पदार्थ है।
  • यह आंतों को उत्तेजित करके दस्त लाता है।
  • जिससे आंतों के अंदर सड़े हुए पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
  • और उनसे होने वाला पेट दर्द तथा पेट फूलना बंद हो जाता है।
  • इसके सेवन से आंतों के विजातीय द्रव्य नष्ट हो जाते हैं।
  • इसके तेल को पेट पर मालिश करने से और इसकी एनेमा देने से लाभ होता है।
  • पित्त से पैदा हुई पथरी में यह औषधि बहुत लाभकारी है।
  • इसके तेल में थोड़ी सी शक्कर और पानी मिलाकर देने से आंतों के कीड़े नष्ट होते हैं।
  • आंतों से बहने वाला खून बंद हो जाता है।
  • रक्तातिसार और आंत्र ज्वर में रक्तस्राव बंद करने के लिए यह एक उत्तम औषधि है।
  • बवासीर में इसकी गोलियां बनाकर देने से लाभ होता है।
  • रक्त स्राव बंद हो जाता है।
  • रक्त युक्त आंव, आंव और आंत्र ज्वर में इसकी 1 घंटे में 20 बूंद की मात्रा में देनी चाहिए।

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