indrayan fruit in hindi | फायदे से भरपूर है इन्द्रायण
इन्द्रायन ( indrayan fruit in hindi) भारतवर्ष में सभी जगह पाया जाता है। इसकी बेल बहुत लंबी होती हैं। उसमें तरबूज के पत्तों के समान पत्ते लगते हैं। इस बेल पर नर और मादा दो प्रकार के फूल लगते हैं। यह कड़वी, चरपरी, शीतल और रेचक है। यह गुल्म, उदर रोग, कफ, कृमि, कोढ़ और ज्वर को दूर करने वाली होती है। यह फोड़ा, जलोदर, कफ, धवल रोग, व्रण, श्वास, खांसी, मूत्र की व्याधि, पीलिया, तिल्ली, क्षय रोग और घेंघा आदि दूर करती है।
इंद्रायन | indrayan
Table of Contents
- 1 इंद्रायन | indrayan
- 1.1
- 1.2 अन्य भाषाओं में इंद्रायन के नाम
- 1.3 आयुर्वेद के अनुसार इंद्रायण के गुण
- 1.4 यूनानी चिकित्सा में इंद्रायण के गुण
- 1.5 विभिन्न रोगों में इंद्रायण का उपयोग
- 1.6 आंख के अंदर के बालों से होने वाली दिक्कत कैसे दूर करें ?
- 1.7 अंड वृद्धि और अन्य रोगों में किस प्रकार लाभकारी है इन्द्रायन?
- 1.8 लीवर की गांठ, तिल्ली रोग में लाभकारी है यह औषधि
- 2 लाल इंद्रायन | Red indrayan
- 2.1 अन्य भाषाओं में लाल इन्द्रायन के नाम
- 2.2 आयुर्वेद के अनुसार लाल इंद्रायन के गुण
- 2.3 यूनानी चिकित्सा में लाल इन्द्रायन के गुण
- 2.4 प्लेग का जहर निकालने में लाल इंद्रायण किस प्रकार उपयोगी है?
- 2.5 सर्दी, गर्मी से होने वाले नाक के फोड़े में किस प्रकार लाभकारी है लाल इंद्रायन?
- 2.6 मूत्र रोग निवारण में किस प्रकार लाभकारी है लाल इंद्रायण?
- 3 अस्वीकरण
इन्द्रायन भारतवर्ष में सभी जगह पाया जाता है। इसकी बेल बहुत लंबी होती हैं। उसमें तरबूज के पत्तों के समान पत्ते लगते हैं। इस बेल पर नर और मादा दो प्रकार के फूल लगते हैं। इसके फल की गोलाई 2 से 3 इंच तक ब्यास में होते हैं । पहले इनका रंग हरा, फिर पीला और सफेद रंग की धारियों वाला होता है। इसके बीज भूरे, चिकने, चमकदार, लंबे, गोल और चपटे होते हैं। इस बेल का पंचांग ही कड़वा होता है।
अन्य भाषाओं में इंद्रायन के नाम
हिंदी में इंद्रायण; संस्कृत में आत्मरक्ष, बृहदृवारूणि,बृहत्फल,चित्रल, चित्र फल, चित्रावली, देवि, दीर्घवल्ली, हस्तीदांत,कपिलाक्षी,कापा,महाफल, कुम्भासि; गुजराती में इंद्रवारुणी, इन्द्रायन; मराठी में इंद्रायण, इंद्र फल; बंगाली में इन्द्रायन, माखल; उर्दू में इन्द्रायण; अरबी में हवजल, हमजक ; अंग्रेजी में citrullus colocynthis आदि नामों से जाना जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार इंद्रायण के गुण
यह कड़वी, चरपरी, शीतल और रेचक है। यह गुल्म, उदर रोग, कफ, कृमि, कोढ़ और ज्वर को दूर करने वाली होती है। यह फोड़ा, जलोदर, कफ, धवल रोग, व्रण, श्वास, खांसी, मूत्र की व्याधि, पीलिया, तिल्ली, क्षय रोग और घेंघा आदि दूर करती है। यह खून बढ़ाता है। इसकी जड़ सीने की जलन और जोड़ों के दर्द में फायदेमंद है। आंख के रोग और गर्भाशय के रोगों में लाभकारी है। गर्भस्थ बालक को असमय बाहर आने से रोकती है।
यूनानी चिकित्सा में इंद्रायण के गुण
यह तीसरे दर्जे में गर्म और दूसरे दर्जे में रुक्ष है। इसके बीज और छिलके ग्रहण नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये अत्यंत मरोड़ी पैदा करके मृत्यु का कारण बन जाते हैं। अधिक मात्रा में इसका सेवन आमाशय को हानि पहुंचाता है। इससे मरोड़ तथा पेचिश उत्पन्न होती है। इसके पत्ते आंतों के लिए हानिकारक हैं। इसके प्रभाव को बबूल के गोंद से कम किया जाता है। इस औषधि की मात्रा 1 माशे से 3 माशे से तक की है
इंद्रायण का गूदा सूजन उतारता है। वायु को नष्ट करता है। स्नायु मंडल संबंधित बीमारियों जैसे लकवा, फालिज, आधासीसी, मृगी और विस्मृति इत्यादि रोगों में उपयोगी है। यह मस्तिष्क विकार ठीक करता है। इसका तेल कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
विभिन्न रोगों में इंद्रायण का उपयोग
- इसकी जड़ का लेप करने से या उसकी पुल्टिस बांधने से स्त्रियों का स्तनपाक दूर होता है।
- जब गुर्दे के अंदर मूत्र का बनना बंद हो जाता है या मूत्र रुक जाता है, तब इंद्रायण का रेवंद चीनी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
- इसकी जड़ के 1 माशे चूर्ण में दो रत्ती सेंधा नमक मिलाकर गर्म जल के साथ देने से बच्चों के डिब्बा रोग में लाभ होता है।
- इंद्रायण की गिरी और एलवे को पीसकर गर्म पानी के साथ देने से आफरा मिटता है।
- इसकी जड़ को पीसकर गाय के घी में मिलाकर योनि पर लेप करने से बच्चा पैदा होने में दर्द कम होता है।
- इसकी जड़ के टुकड़ों को 5 गुने पानी में उबालकर जब तीन भाग पानी रह जाए उसको छान कर, उसमें बूरा मिलाकर शर्बत बनाएं।
- इस शरबत को बल के अनुसार उचित मात्रा में देने से उपदंश और वात-पीड़ा में लाभ होता है।
- इसकी जड़ को सिरके में पीसकर सूजन पर लेप करने से सूजन दूर होती है।
- इसके पके हुए फल की धूनी देने से दांतों के कीड़े मर जाते हैं।
- इंद्रायण की जड़ एक तोला, पीपर एक तोला और गुड़ 4 तोला, इन सबको मिलाकर छह माशे से 1 तोला तक की मात्रा रोज लेने से संधिवात में लाभ होता है।
- इंद्रायण की जड़ को गाय के दूध के साथ कई दिनों तक सेवन करने से और इसके बीजों का तेल सिर में लगाने से बाल काले होते हैं।
- घेंघा रोग में इसकी जड़ को गोमूत्र के साथ उपयोग करने से लाभ मिलता है।
आंख के अंदर के बालों से होने वाली दिक्कत कैसे दूर करें ?
आंखों की पलक से भीतर बाजू में एक ऐसा बाल उत्पन्न होता है, जो आंखों के अंदर तकलीफ उत्पन्न करता है। इससे आंख में हमेशा आंसू बहते रहते हैं। इस दर्द को मिटाने के लिए इंद्रायण का एक फल लेकर एक तरफ से उसकी डिगरी अलग कर उसमें दो दो तोला काले सुरमें का टुकड़ा रखकर डिगरी को पीछे बंद करके धूप में रख देना चाहिए। जब फल सूख जाए तब सुरमे को निकाल कर दूसरे फल में रखकर उसे सुखा लेना चाहिए। इस प्रकार तीन फल में उस सुरमे को रखकर सुखाने के पश्चात उसे निकालकर बारीकी से पीस लें। अब इस सुरमे को आंखों में लगाएं जिससे ये बाल गिर जाते हैं, फिर ये बाल पैदा नहीं होते हैं।
अंड वृद्धि और अन्य रोगों में किस प्रकार लाभकारी है इन्द्रायन?
अजवाइन 10 तोला, मांढ़ी आंवले के पत्ते 8 तोला, निसोध की जड़ की छाल 2 तोला, हरड़ एक तोला, आंवला एक तोला, बहेड़ा एक तोला, सोंठ एक तोला, मिर्च एक तोला, पीपर एक तोला, रेवंद चीनी का सत्व एक तोला, एलुवा एक तोला, चित्रक की जड़ एक तोला, अकलकरा एक तोला, मेदा लकड़ी एक तोला, आंबा हल्दी एक तोला, सज्जीखार एक तोला, फूली हुई फिटकरी एक तोला, लोंग एक तोला, जायफल एक तोला, संचर नमक एक तोला, सेंधा नमक एक तोला, बिड नमक एक तोला, सांभर नमक एक तोला, भोरिंगणी की जड़ एक तोला, पीपला मूल एक तोला, काली जीरी एक तोला, राई एक तोला, स्याह जीरा 1 तोला, सुहागा एक तोला, नागरमोथा एक तोला- इन सब औषधियों को लेकर चूर्ण बनाएं।
फिर इंद्रायण के 10 से 11 फल लेकर उनमें डिगरियां लगाकर उन फलों में उस चूर्ण को भर कर पीछे डिगरियां बंद कर कपड़ मिट्टी करके उपले कण्डों की आग डालें। जब फलों के ऊपर की मिट्टी पककर लाल हो जाए तब फलों के अंदर भरे हुए चूर्ण को और फलों के गर्भ की छाया में सुखाकर पीस लेना चाहिए। इस चूर्ण की प्रतिदिन सुबह शाम 3 से 6 माशे से की खुराक में एक तोला अरंडी के तेल के साथ मिलाकर आधा पाव गाय के दूध में डालकर पीने से अंड वृद्धि का रोग दूर हो जाता है।
लीवर की गांठ, तिल्ली रोग में लाभकारी है यह औषधि
इस औषधि को 5 तोला गोमूत्र के साथ पीने से जलोदर रोग में लाभ होता है। इसी चूर्ण को एक तोला धीववार के गूदे के साथ मिलाकर खाने से लीवर की गांठ, तिल्ली और कामला रोग दूर होते हैं। इस औषधि को बेर की जड़ के साथ लेने से वायु का गोला दूर होता है। इसी प्रकार भिन्न भिन्न अनुपातों के साथ यह औषधि विभिन्न रोगों में लाभकारी है।
लाल इंद्रायन | Red indrayan
लाल इंद्रायन की बेल बहुत लंबी होती है। इसकी बेल बड़े ऊंचे ऊंचे झाड़ों में चढ़ जाती है। इसके पत्ते दो से 6 इंच व्यास के और त्रिकोण से समकोण तक होते हैं। इसके फल गोल तथा नारंगी के समान होते हैं। पकने के बाद इसके फल लाल हो जाते हैं। इसके फलों में नारंगी रंग की 10 धारियां होती हैं। इसका गूदा काले रंग का होता है। इसमें बहुत से बीज होते हैं। यह जमीन को बहुत मजबूती से जकड़े रहती है। इसमें एक के नीचे एक कई गांठें होती हैं।
अन्य भाषाओं में लाल इन्द्रायन के नाम
हिंदी में लाल इंद्रायन, इंद्रायण, महाकाल; संस्कृत में श्वेत पुष्पी, मृगाक्षी, महाकाल; गुजराती में लालद्रवारूणी; बंगाली में माकाल; तेलुगु में अबदुत; अंग्रेजी में trichosanthes palmata आदि नामों से जाना जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार लाल इंद्रायन के गुण
इसका फल श्वांस, कान के रोग और पीनस में उपयोगी है। यह गले का रोग, अपच, श्राव, खांसी, प्लीहा, उदर रोग और गूढगर्भ का निवारण करता है।
यूनानी चिकित्सा में लाल इन्द्रायन के गुण
- इसका फल कड़वा, पेट के आफरे को दूर करने वाला, विरेचक और गर्भ श्रावक है।
- आधासीसी, मस्तिष्क की गर्मी, नेत्र रोग, कुष्ठ रोग, मिर्गी और आमवात में यह लाभदायक है।
- इसके कुल्ला करने से दांत का दर्द ठीक होता है।
- इसके बीज उल्टी कराने वाले और विरेचक होते हैं।
- इसके फल का धुआं स्वास के रोगियों को पिलाया जाता है।
- इस धुएं से गले में जमा हुआ कफ ढीला होकर निकल जाता है।
- फुफ्फुस की सूजन में इसकी जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर इसकी जड़ और बड़ी इंद्रायण की जड़ को बराबर लेने से लाभ होता है।
- त्रिफला और हल्दी के साथ तैयार किया हुआ शीतल काढ़ा सुजाक में लाभप्रद है।
प्लेग का जहर निकालने में लाल इंद्रायण किस प्रकार उपयोगी है?
इसकी जड़ के नीचे कई गांठें होती हैं। उन गांठों में सबसे नीचे वाली या सातवें नंबर की गांठ को लाकर उसे ठंडे पानी में घिसकर, प्लेग की गांठ पर दिन में दो बार लगाना चाहिए। इसी को डेढ़ माशे तक खुराक उसे पिलानी चाहिए। इस प्रयोग से गांठ धीरे-धीरे बैठने लगती है। बुखार भी हल्का पड़ने लगता है और दस्त की राह से प्लेग का जहर उतर जाता है। बीमार व्यक्ति को चैन आता है।
इसी प्रकार लाल इन्द्रायन की गांठ के साथ संखिया, जहरी कुचले की जड़, काली जीरी, लोध और हरड़- यह सभी वस्तुएं समान भाग में मिलाकर गोमूत्र में पीसकर प्लेग की गांठ पर लेप करने से विशेष लाभ होता है।
सर्दी, गर्मी से होने वाले नाक के फोड़े में किस प्रकार लाभकारी है लाल इंद्रायन?
सर्दी, गर्मी से नाक में फोड़े होते हैं और जिनमें से सड़ा हुआ पील निकलता है। इसमें लाल इंद्रायण के फल पीसकर नारियल के तेल के साथ गर्म करके लगाएं। इससे बहुत लाभ होता है। इसके सेवन से कान के भीतर का मैल भी साफ हो जाता है।
मूत्र रोग निवारण में किस प्रकार लाभकारी है लाल इंद्रायण?
लाल इंद्रायन की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा और आंवला, प्रत्येक को बराबर लेकर जौकुट कर, इनका काढ़ा बनाकर शहद के साथ पीने से मूत्र रोग में लाभ होता है। इसके फल को चिलम में रखकर पीने से दमे में लाभ होता है।
अस्वीकरण
किसी भी आयुर्वेदिक दवा का सेवन करने से पहले वैद्य या चिकित्सक की सलाह लेना बहुत जरूरी है। हमें आशा है आप इस लेख से लाभान्वित होंगे। ऐसे ही महत्वपूर्ण औषधियों का लाभ उठाने के लिए हमारी वेबसाइट में आएं और लाभ उठाकर स्वस्थ जीवन व्यतीत करें।
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