brahmacharya in hindi | brahmacharya for 1 year benefits
“ब्रह्मचर्य” का अर्थ है ब्रह्म अर्थात परमात्म तत्व में विचरण करना। दूसरे शब्दों में अपने संयम और सदाचार द्वारा परमात्मा की ओर मन , वचन और कर्म से अग्रसर होना। यह जीवन की उच्च भूमिका है। सामान्य ज्ञान इस भूमिका में नहीं पहुंच पाता है। इसके लिए दीर्घकालीन अभ्यास की आवश्यकता है। ब्रह्मचारी का दूसरा अर्थ है जननेंद्रिय का संयम। वस्तुतः ब्रह्मचारी एक प्रकार का व्रत और तप है, जिसके द्वारा मनुष्य को जीवन साधना में निरत रहना पड़ता है।
contents :- 1- ब्रह्मचर्य 2- ब्रह्मचर्य का प्रभाव 3- ब्रह्मचर्य ही परम तप है 4- भक्त हनुमान जी का ब्रह्मचर्य 5- ब्रह्मचर्य ही परंतप 6- ब्रह्मचर्य ही संजीवनी बूटी है 7- ब्रह्मचर्य की पूंजी को संभालना 8- असंयम के घातक परिणाम 9- असंयमी व्यक्ति की शारीरिक स्थिति 10- ब्रह्मचर्य की रक्षा कैसे करें 11- ब्रह्मचर्य की रक्षा के कुछ महत्वपूर्ण उपाय
ब्रह्मचर्य
Table of Contents
- 1 ब्रह्मचर्य
- 1.1 ब्रह्मचर्य का प्रभाव:–
- 1.2 ब्रह्मचर्य ही परम तप है ? | Is Brahmacharya the ultimate austerity ?
- 1.3 भक्त हनुमान जी का ब्रह्मचर्य
- 1.4 ब्रह्मचर्य ही परंतप
- 1.5 ब्रह्मचर्य ही संजीवनी बूटी है ?
- 1.6 ब्रह्मचर्य की पूंजी को संभालना ?
- 1.7 असंयम के घातक परिणाम
- 1.8 असंयमी व्यक्ति की शारीरिक स्थिति
- 1.9 ब्रह्मचर्य की रक्षा कैसे करें ?
- 1.10 ब्रह्मचर्य की रक्षा के कुछ महत्वपूर्ण उपाय:-
“ब्रह्मचर्य” का अर्थ है ब्रह्म अर्थात परमात्म तत्व में विचरण करना। दूसरे शब्दों में अपने संयम और सदाचार द्वारा परमात्मा की ओर मन , वचन और कर्म से अग्रसर होना। यह जीवन की उच्च भूमिका है। सामान्य ज्ञान इस भूमिका में नहीं पहुंच पाता है। इसके लिए दीर्घकालीन अभ्यास की आवश्यकता है। ब्रह्मचारी का दूसरा अर्थ है जननेंद्रिय का संयम। वस्तुतः ब्रह्मचारी एक प्रकार का व्रत और तप है, जिसके द्वारा मनुष्य को जीवन साधना में निरत रहना पड़ता है।
ब्रह्मचर्य का प्रभाव:–
ब्रह्मचारी से बुद्धि प्रखर होती है। इंद्रियों की उछल कूद बंद होती है। स्मरण शक्ति तीव्र होती है। मननशक्ति का विकास होता है। चित्त में एकाग्रता आती है। आत्मिक बल बढ़ता है। आत्मनिर्भरता, निर्भीकता और साहसिकता जैसे गुण होता है उत्पन्न होने रखते हैं। विद्यार्थी जीवन से ही ब्रम्हचर्य पालन से शरीर दृढ़, मन पवित्र और आत्मा निर्मल होती है। तेज बढ़ता है। उत्साह में वृद्धि होती है। स्वास्थ्य, दीर्घायु, तेज, विद्या एवं शक्ति सामर्थ्य सब ब्रह्मचर्य पर ही आश्रित है।
ब्रह्मचर्य ही परम तप है ? | Is Brahmacharya the ultimate austerity ?
अर्थात ब्रह्मचर्य सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। भीष्म पितामह ने पूरे जीवन भर ब्रह्मचर्य धारण किया था तभी उनको इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त हुआ। उसी के प्रताप से उनमें मृत्यु को भी रोक देने की शक्ति उत्पन्न हुई थी। उनकी इच्छा मृत्यु इसका जीता जागता प्रमाण है। ऐसे कई सारे ऋषि मुनि हमारे प्राचीनकाल में हुए हैं और अभी भी हैं। दधीचि ऋषि के विषय में बताते हैं कि उनकी हड्डियों से वज्र बनाया गया यह भी ब्रम्हचर्य का ही प्रभाव था। महर्षि पाणिनि ने एक ही चुल्लू में पूरे समुद्र का पानी पी लिया । ऐसा परम तप ब्रह्मचर्य के प्रभाव से ही उनको प्राप्त हुआ। ब्रह्मचर्य में ब्रह्मांड को हिला देने की शक्ति है। बस ऐसा संयम प्राप्त करना अगर हमको आ जाए। ब्रह्मचर्य कोई तुरंत प्राप्त होने वाला फल नहीं है बल्कि वर्षों के संयम का परिणाम होता है।
भक्त हनुमान जी का ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य का प्रभाव इतना प्रबल होता है कि जो भी आप के प्रभाव में आएगा वह आपको अनुकरण करेगा। ब्रह्मचर्य के लिए सन्यास लेना ही विकल्प नहीं है बल्कि गृहस्थ में भी ब्रह्मचर्य का पालन बहुत अच्छे से किया जा सकता है। पवन पुत्र हनुमान जी इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। भक्त हनुमान जी ने आजीवन ब्रह्मचर्य में रहकर प्रभु श्री राम जी की सेवा की और जीवन प्रभु श्री राम जी के चरणों में अर्पित कर दिया। द्रोणागिरी पर्वत को धारण करना और सुषेन वैद्य को लाना ऐसे कठिन काम कोई ब्रह्मचारी ही कर सकता है। ऐसे ब्रह्मचारी कोई और नहीं राम भक्त हनुमान जी ही थे। जिन्होंने पवन वेग से जाकर संजीवनी बूटी और सुषेन वैद्य सही समय पर लक्ष्मण जी की सेवा में समर्पित कर दिए।
ब्रह्मचर्य ही परंतप
कबीर, गुरु नानक ,गोस्वामी तुलसीदास जी ,रविदास महात्मा आदि अनेकों गृहस्थ महात्मा समय-समय पर भारत में हुए हैं। इन महात्माओं का प्रभाव लोगों पर ऐसा हुआ की पूरा समाज इनका अनुकरण करने लगा। ये महात्मा इस प्रकार उस परमात्म तत्व में लीन हुए की उसी का रूप बन गए।
नरेंद्र कहा जाने वाला एक बालक ब्रह्मचर्य के प्रभाव से एक महान योगी ‘स्वामी विवेकानंद’ बन गया। उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक गृहस्थ महात्मा थे। उनका प्रभाव स्वामी विवेकानंद जी पर ऐसा हुआ कि उन्होंने भारतीय संस्कृति का उद्घोष पूरी दुनिया में करा दिया जिसको ”शिकागो धर्म सम्मेलन” के नाम से हम जानते हैं।
अनेकों महात्मा भारत की धरती पर पैदा हुए जिन्होंने इस माटी के लिए अपने आपको न्योछावर कर दिया। कई क्रांतिकारी हुए सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, ज्योतिबा फुले, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई आदि अनेकों वीर वीरांगनाओं ने अपना जौहर ब्रह्मचर्य के दम पर ही दिखाया। ब्रह्मचर्य का ऐसा प्रभाव हमारे जीवन में होता है कि हमारे सामने कोई भी समस्या जटिल नहीं दिखाई देती हमारा ध्यान हमेशा समाधान की तरफ चले जाता है। और मन में एक उत्सुकता होती है एक सकारात्मकता होती है कभी भी नकारात्मकता की तरफ हम नहीं जाते हैं। तभी ब्रह्मचर्य को परंतप कहा गया है।
ब्रह्मचर्य ही संजीवनी बूटी है ?
इस भौतिक संसार में जो कुछ भी निरोग, सुंदर, कांतिवान, मनोहर और जो कुछ वीरता, ओज, पराक्रम, बुद्धिमत्ता, सौम्यता, श्रेष्ठता आदि गुणों से जो समझा जाता है वह सब ब्रह्मचारी का ही प्रतिफल है। ब्रह्मचर्य पालन करने वाला व्यक्ति ही वीरता और विजय का वरण करता है। जबकि ब्रह्मचर्य का अभाव पतन-पराभव और विनाश का हेतु बनता है। फिर भी वर्तमान की विडंबना यह है कि नित्यप्रति के जीवन में ब्रह्मचर्य का अभाव ही दृष्टिगोचर होता है।
वह युवा जो ब्रह्मचर्य की रक्षा नहीं कर पाते, डरपोक, दीन -हीन और दुर्बल होते हैं। ब्रह्मचर्य से ही पुरुषार्थ बढ़ता है। जो मनुष्य पुरुषार्थी है वही साहस और हिम्मत से काम लेता है। कठिनाइयों का मुकाबला करता है। उत्साही, सजीव, शक्तिशाली और दृढ़ निश्चय ही होता है। उसे रोग नहीं सताते, वासनाएं चंचल नहीं बनाती और दुर्बलताएं विवश नहीं करतीं। वह प्रभावशाली व्यक्तित्व प्राप्त करता है।
दया, क्षमा, शांति, परोपकार, प्रेम और सद्भाव उसके जीवन में छलकते रहते हैं। जो कम से कम 25 वर्ष की आज तक मन, वचन और कर्म से दृढ़ता पूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं वे स्वयं को जीवनी शक्ति से भरपूर महसूस करते हैं। वे ओजवान और बलवान बनते जाते हैं। उनके अंग अंग पर सौन्दर्य छलकने लगता है। उनके मुखमंडल पर अभिनव आभा देखी जा सकती है।
ब्रह्मचर्य की पूंजी को संभालना ?
ब्रम्हचर्य एक ऐसी पूंजी है जिसे बर्बाद कर देने के बाद आप उसे बाजार से नहीं खरीद सकते। ब्रह्मचर्य की बर्बादी से आरोग्य लुट जाता है ,व्यक्ति रोग ग्रस्त हो जाता है और आयु क्षीण होने लगती है। ऋषियों और महर्षियों ने सावधान किया है कि हे मनुष्य तू अपनी इस संचित पूंजी को संभाल कर रख, व्यर्थ बर्बाद न कर, ब्रह्मचर्य का नाश कर देने से रोग-शोक और मृत्यु को बुलावा भेजना जैसा है। ब्रह्मचर्य द्वारा दीर्घायु प्राप्त कर बुद्धि-वैभव सहित संपन्नता का आनंद ले।
असंयम के घातक परिणाम
ब्रह्मचर्य का पालन न करने वाला व्यक्ति हीन भावना का शिकार हो जाता है। उसका किसी काम में मन नहीं लगता। सुस्त रहता है, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है, क्रोध बहुत आता है, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होने लगता है। उसके मन में गंदे, कामुक विचार घूमड़ते रहते हैं। वह अश्लील चित्र देखना और अश्लील किताबें पढ़ना पसंद करता है। श्रृंगार प्रधान उपन्यासों, विषय वासना संबंधी पुस्तकों में ही रस लेता रहता है।
गंदी फिल्में, गंदे गीत और अश्लील हरकतें बस यही उसकी प्रवृत्ति बन जाती है। जिसका मनमस्तिष्क इन हरकतों में लगा हो, क्या वह विद्यालयीन पढ़ाई में रुचि लेगा? ऐसे लड़के और लड़कियां ना पढ़ते हैं और नाही और बच्चों को पढ़ने देते हैं। सोचिए इनसे आप कैसे बचेंगे?
असंयमी व्यक्ति की शारीरिक स्थिति
यहां तक तो केवल एक असंयमी के मानसिक स्तर की बात हुई है। अब उसकी शारीरिक स्थिति देखिए। शरीर में कमजोरी, पिंडलियां सुती हुई, त्वचा मुरझाई हुई, कपूर्द्धा से हुए, नेत्र रूखे, गालों पर मुहांसों के दाग, झांई, काले चकत्ते, जोड़ों में दर्द, हथेली और तलवे पसीजना, अपच और कब्जियत, रात्रि में स्वप्नदोष, आंखों के सामने अंधेरा छा जाना, थोड़े से परिश्रम से थक जाना चक्कर आ जाना मूर्छा जाना आदि वे शारीरिक कमजोरियां हैं जो ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले युवकों में प्रायः पाई जाती हैं। यहां तक कि ऐसे युवकों को गर्मी, प्रमेह ,सुजाक आदि निंदनीय रोग घेर लेते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन जीवन का अनिवार्य पहलू है। ब्रह्मचर्य के बल पर मनुष्य में अनेक गुण विकसित होते हैं। यहां तक कि वह मानव से महामानव की स्थिति में पहुंच जाता है।
ब्रह्मचर्य की रक्षा कैसे करें ?
किशोरावस्था से यौवन में प्रवेश का समय बड़ा नाजुक होता है। यदि युवक- युवतियां संभल जाएं तब तो ठीक है अन्यथा बिगड़ने और कुमार्ग पर जाने के लिए समाज में इतने प्रलोभन फैले हुए हैं की अच्छे परिवारों के युवक -युवतियां भी बुरे मार्ग पर कदम बढ़ाने लगते हैं। यौवन ब्रह्मचर्य पर निर्भर है। संयम से रहिए यौवन की रक्षा स्वत: हो जाएगी ।
टीवी, सिनेमा, गंदा साहित्य यह तीनों युवाओं का मटियामेट करने में लगे हैं। ये अश्लीलता भर खाते हैं और युवाओं को गंदी राह बताते हैं। आप घरों में टीवी देख रहे हैं, पर देखते समय केवल उसी पर ध्यान केंद्रित कीजिए जिसका जीवन निर्माण से निकट संबंध हो। फूहड़ को देखकर क्या करोगे उसे छोड़ दीजिए और सार तत्व को ग्रहण कीजिए। अगर आप में इस प्रकार की निर्णायक शक्ति विकसित हो गई तो आप टीवी सिनेमा किए कुप्रभाव से बच्चे रह सकेंगे।
ब्रह्मचर्य की रक्षा के कुछ महत्वपूर्ण उपाय:-
1-सूर्योदय से पूर्व उठना, नित्य प्रातः घूमना, दौड़ लगाना।
2-योग व्यायाम करना।
3-अंकुरित अन्न का नाश्ता करना, तेल,खटाई,मिर्च-मसालों का कम प्रयोग करना।
4-कोई वासनात्मक विचार तरंग मन में आते ही मन में दोहराते रहना कि मैं विशुद्ध आत्मा हूं। इंद्रियां मेरे वस में हैं, मैं हमेशा शुभ सोचता हूं। मेरा संकल्प अत्यंत महान है। मैं विषय वासना के क्षणिक सुख के लिए इनके चंगुल में नहीं बन सकता।
5-ब्रह्मचारी बनने में शान समझना।
6-मन को शुद्ध और सात्विक विचारों में लगाए रखना।
7-सदाचारी बनने का संकल्प करना।
8-यदि लड़के हैं तो लड़कियों के प्रति पूज्य भाव रखें इसके विपरीत लड़कियां लड़कों के प्रति पूज्य भाव रखने का संकल्प करें।
संकल्प करें कि सदाचारी बनेंगे, आगे बढ़ेंगे और दूसरों को भी बढ़ाएंगे
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